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भाषा की संभावनाओं से पहली परिचयात्मक कविता के माध्यम से ही होती है। प्रवीणता की रंगीन भाषा और रोज़मर्रा की चीज़ों पर उनका खूबसूरत नजरिया, राया के व्यंजक चित्रों के साथ मिलता है, तो ऐसी मनोहरी किताब बनती है। कहानी का मज़ा बढ़ाने के लिए यह मधुर प्रस्तुति बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें सरलता में भी गहराई होती है।
यह कविता अपनी भाषा और चित्रों-दोनों के सहारे-जंगल की रात को जीवंत बना देती है।
“अँधेरे से एकदम भरी रात देखी, उजाले से एकदम भरी रात देखी…” जैसी पंक्तियाँ शब्दों के खेल और लय से एक अलग ही जादू रचती हैं। “ये किसका रफू था? ये किसने सिले थे?” जैसी शब्दावलियाँ और मुहावरे कविता को नई चमक देते हैं और उसके अर्थ में मिठास और गहराई जोड़ते हैं। काले-सफेद रेखाचित्र अपनी बारीकियों के साथ पाठक को रोक लेते हैं; हर पन्ने पर जंगल की अनुभूति-सन्नाटे, फुसफुसाहट और हल्की हलचल-को महसूस कराया जाता है। कविता बेहद संवेदनशील है, जो भाषा, ध्वनि और दृश्य-तीनों का मेल कर एक गहरा अनुभव पैदा करती है।
कहानी के नायक का गाँव एक घना जंगल और नदी के पास है। उसे साप्ताहिक बाज़ार में घूमना अच्छा लगता है, लेकिन एक दिन बाज़ार से लौटते हुए रास्ता पकड़ने में देर हो जाती है। अधूरा अँधेरा और ताज़ा बारिश देखकर उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो जाती है।
इन सभी कठिनाइयों के बावजूद वह कैसे घर पहुँचता है, यही जानने के लिए यह सरल और सुंदर किताब श्वेता श्याम के चित्रों के साथ जीवंत बन उठती है।
एक मिनट में कितने सेकंड होते हैं? ऐसे ही छोटे-छोटे सवालों से शुरू होकर यह कविता समय को एक नई तरह से खोलती है। इसमें जिज्ञासा, कल्पना और भाषा का खेल है, और साथ ही रोज़मर्रा की बातचीत का मज़ा भी है। भाषा हल्की-फुल्की और आकर्षक है। किताब के चित्र कविता के खेल-भरे मूड को और बढ़ा देते हैं। यह कहानी-सी कविता बच्चों और बड़ों-दोनों के लिए साथ में पढ़ने का अच्छा मौका देती है।
यह एक बेहद शानदार और लंबी, मनमौजी-सी कविता है। हास्य और कल्पना को बहुत ही हल्के, मीठे अंदाज़ में बुनकर रची गई है। किसी गाँव में सूखा पड़ा है। कुछ साहसी लोग बादल की खोज में निकलते हैं। भाषा में एक खिलंदड़ापन है, जो पढ़ते ही मुस्कान ले आता है। लोककथाओं जैसी जो प्राकृतिक ताल और लय इसमें है, वही पढ़ने का मज़ा और बढ़ा देती है।
ऊपर से देखने पर यह कविता सीधी-सादी लगती है, लेकिन इसके भीतर कई अर्थ छुपे हैं, जिन्हें बच्चे भी अपनी तरह से खोज सकते हैं। एलन शॉ के चित्र-संसार इसकी मनमौजी दुनिया को और भी रंगीन बना देते हैं।
इस आकर्षक किताब में हकीम साहिब एक गुज़रे ज़माने की तहज़ीब से हमारा परिचय करवाते हैं। उनका घोड़ा सुंदर और अक्लमंद है और हकीम साहिब को गाँव में सही जगह ले जाता है।
उर्दू में बाल-साहित्य की याद दिलाने वाली यह कविता–किस्सागोई की ताज़गी, हास्य के हल्के छींटों और बेहतरीन चित्रों के माध्यम से आपको बराबर अपनी दुनिया में खींच लेती है। संवाद की गुंजाइश हर पन्ने पर मौजूद है। बेहतरीन चित्र और डिज़ाइन वाइट स्पेस का खूबसूरती से इस्तेमाल करते हैं। रंग, लाइट और शेड का प्रयोग मनमोहक है।
पूँछ के ऊपर इस मनोरंजक कविता में बंदर, लंगूर, बिल्ली, नीलगाय, शेर और आदमी—सब शामिल हैं। गुलज़ार की चुटीली भाषा हो और हँसता-चिलखता मिसप्रिंट का इस्तेमाल डिज़ाइन में बड़े प्रयोगात्मक और आकर्षक ढंग से किया गया हो, तो कौन है जो इस किताब को चुनना, पढ़ना और गुनगुनाना न चाहेगा।
चित्रों में गणितीय संरचना और बारीक काम का सुंदर प्रदर्शन है। वाइट स्पेस का प्रभावशाली उपयोग आँखों को घूमने और दिमाग़ को सोचने की गुंजाइश देता है। ऐसी चित्र-पुस्तकें सुकून देती हैं।
लोकभाषा में रची यह कविता यथार्थ और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण है। इसमें भैंस की पाड़ों की खूबसूरती, फुर्ती, दौड़ और चंचलता—सबका मोहक वर्णन मुखर लय और सुगठित छंद के माध्यम से, तथा दैनिक बिंबों के सहारे किया गया है। इसका पूरा आनंद कविता के सस्वर पाठ से ही मिल सकता है।
“धुन्ना कै पँड़िया” जीव-जगत के सौंदर्य का समारोह है और साथ के चित्र-रंग तथा गति-अंकन पाड़ी के सौन्दर्य का नायाब मूर्तन।