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इस क़िताब में आपको चित्रों में कवितायेँ और कविताओं में चित्र मिलेंगे। यह तो हम जानते हैं कि पेड़ कितने ज़रूरी हैं पर शायद पेड़ों को रंगरेज़ की तरह न देखा हो। यह किताब प्रकृति का ‘शेड कार्ड’ है। बसंत में कचनार, जकरन्दा और सिल्क फ्लॉस से रंगी जमीन की याद दिलाती है। हर रंग से पहले सुशील शुक्ल की कविताएँ प्रकृति को और करीब ले आती हैं। सड़क और घर के दीवारों पर फैले बोगनविलिया से रिश्ता ही बदल जाता है। फूलों और फलों से रंग बनाने की विधि काफ़ी स्पष्ट है और आपको प्रयोग करने के लिए आमंत्रित ज़रूर करेगी।
‘बाघ भी पढ़ते हैं’ चंदन यादव की छोटी छोटी कहानियों और बतकहियों का संकलन है। इसकी शीर्षक कहानी बाघ और गाय की एक लोक कथा को आधार बनाकर लिखी गई है जिसमें हर पात्र अपनी घिसी पिटी भूमिका को छोड़कर नए तरीके से पेश आता है। हर कहानी में भाषा की सादगी, उसकी ताकत और इस्तेमाल का अंदाज़ देखने को मिलता है। भित्ति चित्र शैली में अमृता के चित्र इन कहानियों में उतरने का रास्ता देते हैं।
ऐसी कितनी ही कविताएं और गीत हैं जो बचपन में खेल का अनिवार्य हिस्सा रही हैं। टके थे दस भी उन्हीं में से एक है। लेकिन इसमें लोकगीत की खुशबू है। उलटी गिनती में चलने वाला ये गीत अपने हर अंक में एक मस्ती समेटे हुए है। इसमें लोक जीवन की हंसी ठिठोली है और रोज़मर्रा के जीवंत चित्र हैं। सेठ जी का पात्र हमें उन सब चरित्रों से मिलवाता है जो कहीं छुपे रहते हैँ और दृश्य बनकर आते हैं।
जुगनू भाई एक चित्रांकित कविता है जिस में एक जुगनू और अन्य कीड़ों की रात में मुलाकात होती है। किताब में खूबसूरत रंगीन चित्र हैं जो रात के दृश्य को एक अलग अंदाज़ में पेश करते हैं। छोटे बच्चों के लिए यह बहुत ही उचित किताब है। कविता के शब्द और चित्र मिलकर एक सौम्य और अनूठा अनुभव देते हैं। चित्रों में रात का अंधेरा और उसमें हल्की-हल्की रोशनी को काले पन्नों पर अनोखे ढंग से उतारा गया है।
यह चित्र कथा एक मेले में अम्मा के खोने, और बच्चे द्वारा अम्मा को तलाशने की कहानी है। यह कहानी मेले के बहुरूप चित्रों के माध्यम से मेले का विस्तृत व बहुसांस्कृतिक परिवेश गढ़ती है। अम्मा को खोजते बच्चे का कुछ सोचना और फ़िर भागकर महिला पुलिस से पूछना ‘क्या आपने इस मेले में एक ऐसी अम्मा को देखा, जिसके पास मेरे जैसा बच्चा नहीं है?’ सवाल से बच्चे की त्वरित सूझबूझ और सहज भोलेपन का जो रूप उभरता है, वह इसे एक दिलचस्प व नायाब रचना बनाता है।
Jiske Paas Chali Gayi Meri Zameen
यह अनूठी पुस्तक एक खेतिहर की कथा कहती है जिसकी ज़मीन छिन कर दूसरे के पास चली गयी है और उसी के साथ बादल, बारिश, सुगंध और मल्हार भी विदा हो गये हैं। अपने बिम्बों तथा संगीत के ज़रिए सब कुछ खोने की अनुभूति को यह कविता मार्मिकता से व्यक्त करती है। रंग -बिरंगे चित्र वातावरण को बखूबी व्यक्त करते हैं। यह कविता दूसरों के दुख और पीड़ा के साथ तादात्म्य स्थापित करने का उदाहरण है।
इस संग्रह की कविताएँ विस्मय-बोध, शब्द-क्रीड़ा और फैंटेसी का अनुपम उदाहरण हैं। यहाँ साधारण और आसपास की चीज़ों के भीतर बसने वाले रहस्य और सौन्दर्य को मनोरम तरीक़े से व्यक्त किया गया है। ये कविताएँ कल्पना को पंख देती हैं और हर वस्तु के अलक्षित पक्ष को ढ़ूँढ़ने को प्रोत्साहित करती हैं। ’कहने को कुछ बचा नहीं ऐसा कभी नहीं होता’, यह वाक्य रचनाशीलता के मंत्र की तरह है।
साथ के चित्र भी अपने प्रयोगशील रंगों और रेखाओं से कविता को प्रकाशमान करते है।
टिफिन दोस्त एक नटखट और प्यारी किताब है। सुशील शुक्ल ने बच्चों की बातों को अपनी कविता में बख़ूबी पिरोया है। प्रिया कुरियन के चित्र भी मस्ती भरे हैं और शब्दों के चुलबुलेपन का साथ निभाते हैं। बच्चों की स्कूली ज़िन्दगी में टिफिन एक बहुत अहम् हिस्सा है और इस से जुड़ी कई बातें कविता में दिखती हैं। यह किताब अलग-अलग परिवारों के खानपान को लेकर कई सवाल भी खड़े करती है। यह मज़ेदार कविता बच्चे और बड़े, दोनों पसंद करेंगे।