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क्या आपको पता था कि कभी कौआ क़ुतुब मीनार को अपनी साइकिल पर लाद ले गया था? या कि जब पापा को डॉक्टर के पास जाना पड़ा था तो क्या ग़ज़ब हुआ था? यह कहानी संकलन गुदगुदाता भी है और लोकजीवन की झलकियाँ भी देता है। भाषा का कमाल, शब्दों का खेल और संवाद गठे हुए तथा नुकीले हैं। इसके चित्र रंग बिरंगे हैं और कहानियों को ठोस या मूर्त बनाने में मदद करते हैं। चित्रों में कहानियों जैसी गतिशीलता है।
अनेक विषयों, वस्तुओं पर रची गयीं कविताओं का यह गुच्छा शिशु गीतों की तरह सरल और सम्मोहक है। यहाँ हाट और गुड़ से लेकर बकरिय़ाँ, शेर और रेगिस्तान भी हैं। कल्पना की उड़ान और कौतुक से सम्पन्न इनकी भाषा का अपना मजा है। ये कविताएँ प्रत्येक वस्तु, जीव और व्यक्ति को नयी नजर से देखने व समझने को आमंत्रित करती हैं, जैसे गाँधी जी और मक़बूल फ़िदा हुसैन पर लिखी कविताएँ, और हमें जीवन की विविधता तथा बहुलता में ले जाती है। चटख रंगों और चौड़ी कूँची वाले चित्र कविता को भित्ति-चित्र की भाँति रूपायित करते हैं।
केवल एक कविता से बनी यह पुस्तक जलेबी का गुणगान है। जलेबियों के पारने, छानने, रस में पगने, दोने में परोसे जाने और फिर मुँह में डलने तक का पूरा क़िस्सा मज़ेदार पदों में दिया गया है। साथ ही जलेबियाँ बनाने वाले रफ्फू भाई की महिमा का बखान भी है। बोलचाल की मुहावरेदार भाषा और रसभरे चक्करदार वाक्यों की अद्भुत मिठास विरल घटना है। पूरे वातावरण को ख़ुशनुमा बनाते रंग और रेखांकन देखते ही बनते है। यह कविता जलेबियों के बहाने जीवन की छोटी छोटी बातों और खुशियों का शानदार उत्सव है।
सबसे अलग लगने वाली यह कविता नीम से एक प्यारी दोस्ताना बातचीत है। इस कविता का अंदाज और बिम्ब, दोनों ही इसे अनूठी बना देते हैं। गीली धूप, पश्मीना फूल, और शोख़ी डाल सरीखे पद, देखने का अंदाज ही बदल देते हैं। यह कविता नीम के पूरे पेड़ की कविता है। नीम के फूल, डाल, पत्ते, निंबोली और छाया तक के बारे में एक साथ। नीम को इतने प्यार और अपनेपन से कम देखा गया होगा। भाषा इतनी आसान कि कविता तुरंत कंठस्थ हो जाती है| चित्रों के रंग नीम के शरीर के हर रंग तथा स्वभाव को जीवंत कर देते हैं।
आसपास की चीजों, दृश्यों, पात्रों से बुनी यह कविता – पुस्तक कल्पनाशील सृजन का अनुपम उदाहरण है। यहाँ अनेक विषयों और वस्तुओं पर अप्रत्याशित कविताएँ हैं जो मामूली प्रसंगों, जैसे नहाने, को भी अविस्मरणीय घटना में तब्दील कर देती हैं। भाषा में नमनीयता और एक खिलंदड़ापन है जो शब्दों तथा ध्वनियों के नये-नये जोड़-तोड़ संभव करती है। किताब के चित्र कविताओं के रंग-अनुवाद की तरह हैं – शब्दों को आकार और रंगों में रूपांतरित करते हुए। ये कविताएँ पाठकों को नये तरीक़े से अड़ोस-पड़ोस को, प्रकृति और स्वयं अपने आप को देखना सिखाती हैं; कल्पना को नये पंख देते हुए भाषा से खेलने और फिर सिरजने को आमंत्रित करती हैं।
यह छोटी पर मनोरम कविता हाथियों की टोली का मार्मिक आख्यान है। केवल आठ पंक्तियों में, छंदोबद्ध और तुकांत, यह कविता हाथियों की टोली के स्वभाव, प्रेम, परस्पर स्नेह और समूह भाव को व्यक्त करती है। भाषा सरल किंतु गहरे अर्थों को व्यंजित करने वाली है। साथ के चित्र कथानक को विस्तार और मूर्तता प्रदान करते हैं, ख़ास कर गहरी यादों को अंकित करता पूरे पन्ने पर फैला आँख की झुर्रियों का क्लोज़-अप। पारिवारिक प्रेम, बच्चों की सुरक्षा,और सयानों के वत्सल भाव को व्यक्त करती यह कविता हाथियों के जीवन का महाकाव्य है।
क्या ‘पादने’ जैसे विषय पर ‘छी’ के सिवाय भी कुछ कहा जा सकता है? यह नमकीन कविता ज़रूर हँसाएगी, चोरी – छिपे नहीं, बल्कि खुल के, मिल-जुल के। सभी जानवरों का पादने का स्टाइल अलग है! क्या हमारा भी? या कि इस पर बात ही नहीं करनी? कविता के साथ चित्र भी कमाल के हैं – शोख, गाढ़े रंगों वाले।अपने आप में बोलने और कहने वाले।
गप्पू गोला बेहद मज़ेदार कविता है जिसमें लोकजीवन के खेल-गीतों की तरह बात से बात निकलती जाती है। ढीले छंद लेकिन कसी हुई लय में, प्रायः तुकों का प्रयोग करते हुए,यह कविता सहज ही अपने साथ लिए चलती है। भाषा बोलचाल की है, लेकिन कल्पना की उड़ान के लिए हमेशा पंख खोले। इसके चित्र पूरे पन्नों पर फैले शोख़ रंग वाले हैं। यह किताब ऐसे बनी है मानो कोई खिलौना हो।कविता की भाँति ही किताब भी पन्ना दर पन्ना खुलती जाती है, किसी प्राचीन पांडुलिपि की तरह।