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बीस कचौड़ी पूड़ी तीस

किताब में सुविख्यात बाल साहित्य लेखक श्रीप्रसाद द्वारा बच्चों के लिए रची गई कविताओं को संजोया गया है। जिनमें बालमन की गहराइयाँ हैं, जीव-जीवन का स्पंदन है, रिश्तों की गरमाहट है, मनोरंजन, कौतुक और ज्ञान-विज्ञान है। शब्दों के खेल, सवाल और वह सब कुछ जो बच्चों को भाता है। कविताओं में यह सब इतना सहज,स्वाभाविक और लयबद्ध है कि बार बार पढ़ने-गुनगुनाने का मन करता है। चित्र प्रभावशील और कविताओं को उभारते से लगते है।‘ पौधा तो जामुन का ही था’ और ‘हाथी चल्लम चल्लम’ बहुत दिलचस्प हैं । ये कविताएँ हिंदी के आधुनिक बाल साहित्य की एक परम्परा से रूबरू कराती हैं।

जुगनू प्रकाशन 2021 श्री प्रसाद प्रोइती रॉय

ग्यारह रुपये का फ़ाउण्टेन पेन

इस किताब की कहानियाँ बेहद नएपन से आम जीवन के सामाजिक, साहित्यिक, सांगीतिक, मानवीय, शैक्षिक और पर्यावरण से जुड़े गहरे सरोकारों को अपने में शामिल करती जाती है। जिनमें बच्चों के स्वभाव और चाहते हैं , उनकी उदासी और दोस्ती है । और भी बहुत कुछ है जो आज के साहित्य में अपेक्षित है । कहानियाँ जितने अनूठे विषयों पर हैं, कही भी उसी अनूठेपन से गई है । बेहद सधी हुई ताज़ातरीन भाषा, विचारों व भावों के अनुरूप हैं । कहानियों को विस्तार और गहराई देने का ज़िम्मा लेते चित्र बेमिसाल हैं।

जुगनू प्रकाशन 2021 अमित दत्ता तापोशी घोषाल

लाइटनिंग

लाइटनिंग, यह सुन्दर और कल्पनाशील नाम है एक बाघिन का, जिसके इर्द गिर्द यह कहानी बुनी गई है। कहानी बाघिन के बारे में रूढ़ मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उसकी नैसर्गिकता को सामने लाती है । उसके अपने घर व घर के अन्य बाशिंदों के साथ प्यार और चाहत के रिश्तों को उभारती है। और उभारती है मानव समुदाय की जंगल जीवों के प्रति उस आत्मीय जवाबदेही को जिसके बिना पर ही इन सबका जीवन संभव और सुखद लगता है। सधी हुई भाषा में ताजगी, सादगी और रवानगी है। सभी चित्र बेमिसाल है खासकर तब का जब ‘चाँद को गर्व हो रह था…कुछ ही देर पहले वह यहाँ थी’ और बाघिन के वहाँ होने को चित्र में उकेरा गया है।

जुगनू प्रकाशन 2021 प्रभात एलन शॉ

मछली नदी खोल के बैठी

इस नन्हीं-सी कल्पनाशील कविता को बार-बार पढ़ने की अभिलाषा होती है शायद अगली बार कुछ अर्थ या भाव बन सके। कुछेक बार पढ़ने पर ही कविता से निकटता बन पाती है । प्रकृति के सन्दर्भ में खोल शब्द से कई मायने बनते बदलते रहते हैं। संभवतः कविता कहती है , खोल के प्रस्तुत प्रकृति में कुछ भी छुपाए या चुराए जाने का डर नहीं है, यह तो दुनिया है, जो चप्पे-चप्पे तालों में है । सुकून देते चित्र कविता के भाव को कुछ और आगे ले जाते हैं। लेखन की केलीग्राफ़ी सुन्दर व कविता के भावों के अनुरूप है। कविता को शब्दशःयाद करना भले संभव न हो, फिर कभी दुबारा पढ़ने पर कुछ नया कहने, गुनगुनाने वादा ज़रूर करती है।

एकलव्य 2021 सुशील शुक्ल वसुंधरा अरोड़ा

बेटियाँ भी चाहें आज़ादी

‘बेटियाँ भी चाहें आज़ादी’ ताक़त और विश्वास के साथ स्त्रियों की हरसंभव स्वाधीनता की उद्घोषणा करती है। यहाँ साधारण से लगने वाले वाक्य भी नारों जैसी तात्कालिकता और ओजस्विता प्राप्त कर लेते हैं।जीवन के हर क्षेत्र में हर तरह की आज़ादी के बग़ैर स्त्री-पुरुष समानता संभव नहीं है।यह किताब संविधान प्रदत्त अधिकारों और मन की बात कहने की आज़ादी की माँग करती है।आकर्षक चित्रों से सज्जित यह किताब बेटियों की पू्र्ण स्वाधीनता का घोषणा-पत्र है।

प्रथम बुक्स 2021 कमला भसीन सृजना श्रीधर

ये सारा उजाला सूरज का

‘ये सारा उजाला सूरज का’ एक सम्मोहक कविता है जो संसार की हर शै में सूरज की उपस्थिति और रूपांतरण को प्रस्तुत करती है।हवा,पानी,जीवों तक में सूरज अलग अलग रंग-रूप में मौजूद है।नये बिम्बों,कल्पनाशील प्रयोगों और जादुई संगीत के कारण यह कविता पुस्तक सहज ही कंठस्थ की जा सकती है।शब्दों को विस्तार देते चित्र सूर्य-किरण के वर्ण-क्रम को व्यक्त करते हैं।सूर्य के महिमा-गान के साथ यह कविता सभी जीवों और पदार्थों की आंतरिक एकता को स्वर देती है।

एकलव्य 2021 सुशील शुक्ल शिल्पा रानाडे

बस्ती में बाढ़

‘बस्ती में बाढ़’ रचनाकारों की आपबीती पर आधारित तीन कथाओं का संग्रह है जो गरीब बस्ती में अचानक आयी बाढ़ की त्रासदी और मनुष्य के जीवट का बोलचाल की भाषा में वर्णन करता है।दुख और मुसीबतों के बीच भी यहाँ कुछ हँसने और खुश होने की गुंजाइश निकल आती है।साथ ही साथ ये कहानियाँ कुछ सवाल भी करती हैं—क्या बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा है या हमारा समाज भी इसके लिए ज़िम्मेवार है।किताब के अंत में एक लेख भी है जो इन सवालों पर चर्चा करता है।

शहीद स्कूल 2021 माया यादव नेहा पटेल टिनम निषाद पूजा सिंह उबिता लीला उन्नी

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