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A motley group of travellers, family and friends, sets out for a week’s trek along the Ganga river. As the journey progresses, many truths are revealed in a gentle but firm manner. These two strands – the enduring yet fragile aspect of both nature and of human relationship are handled sensitively by the author. It is an affectionate and realistic picture of life as many of us know it. Look for the ending!
जानी मानी हस्तियों के बचपन के बारे में इस तरह से लिखी गयी है जैसे आत्मकथा लिखी जाती है। शैली एकदम सहज, बोधगम्य, और रोचक। संगीत, विज्ञान, सिनेमा, साहित्य, पक्षी-विज्ञान आदि क्षेत्रों से बड़ी हस्तियों के बचपन चुने गए हैं। बड़ों के बचपन को ज़रा भी रूमानियत से नहीं देखा गया है। लगभग हर बचपन में ऐसी कई अप्रिय बातें भी हैं जो आम तौर पर व्यक्ति छिपाने की कोशिश करता है। बड़े होने की प्रक्रिया में इस किताब का किसी युवा पाठक को मिल जाना एक सुखद और प्रेरणादायक अनुभव सिद्ध होगा।
यह हिन्दी की कालजयी बाल कविताओं का अनूठा संकलन है जहाँ वे कविताएँ भी हैं जिन्हें आज के बच्चों के दादा के दादाओं ने अपने बचपन में पढ़ा था और वैसी कविताएँ भी हैं जो पहली बार किसी संकलन में प्रकाशित हो रही हैं किंतु जिन सब को आज से सौ साल बाद भी इतने ही प्यार से पढ़ा और सुना जाएगा। यहाँ भाषा और शब्दों के खेल हैं, तुकों की अप्रत्याशित बंदिशें हैं और संगीत का धमाल है। आस पास का दैनन्दिन जीवन है तो आकाश पाताल की गप्पें भी। हर बच्चे, और हर सयाने, के हाथ में यह किताब होनी ही चाहिए।
यह भी एक अनूठी किताब है। इसे खुद बच्चों ने तैयार किया है। बातें भी उनकी हैं और साथ के चित्रांकन भी उनके या उनके साथियों के। ये कहानियाँ इस अर्थ में हैं कि इनमें कुछ न कुछ घटता है और खुद उनके साथ या उनके साथ के लोगों के साथ घटता है। ये अपने जीवन की सच्ची कहानियाँ हैं जिनमें कई तरह के खट्टे मीठे अनुभव हैं, फ़सल कटाई से लेकर स्टेशन पर खोने और अपनी भैंस की कहानी भी। ये पढ़ने वाले के भीतर प्रेम, दुलार और सच्चाई के भाव विकसित करती हैं।
यह “अंकुर सोसाइटी फॉर अल्टरनेटिव्स इन एडुकेशन” के बच्चों द्वारा लिखी गयी कहानियों का संकलन है। यह एक असाधारण संग्रह है। इस संग्रह को पढ़कर लगता है कि बच्चों के लेखन को संपादित करके प्रकाशित करना बुरा विचार नहीं है। ‘भाई की बकबक’; ‘नेकलेस’; ‘दुआ’; ‘पुत्री का ख़त पिता के नाम’; ‘खिड़की, हवा, मछली और मैं’ अगर डायरी लेखन है तो उतना ही कहानी लेखन भी है। लगता है बच्चे खुद ही वह साहित्य रच लेते हैं जिसकी उन्हें भावनात्मक या बौद्धिक ज़रूरत मह्सूस होती है।
कविता लयात्मक और सुमधुर है। सुमधुर ध्वनियों और आनुप्रासिक प्रयोगों के कारण पढ़ना सीख रहे शुरुआती पाठक इस किताब की ओर आकर्षित होंगे। ‘अकॉर्डियन फोल्ड’ के कारण इस किताब को पलटने में भी एक खेल है। अर्थ के स्तर पर भी यह एक अच्छी कविता है। भाव के स्तर पर कविता में स्वतंत्रता और खुलेपन का भाव है। अपने अनूठे डिज़ाइन, सांगीतिक भाषिक प्रयोगों और खुलेपन के भाव के कारण यह इस वर्ष प्रकाशित हुई किताबों में एक अच्छी किताब है।
छोटी सी,प्यारी कहानी जो दो अलग अलग डरों और उनके खत्म होने की कहानी है। बेहद कोमल भाव को केंद्र में रखकर रची गयी यह चित्र-कथा बड़े आशय की गाथा बन जाती है–निर्भयता की गाथा। चित्र कथा को प्रस्तुत भी करते हैं और उनके पूरक भी हैं। यहाँ शब्द और चित्र की जुगलबंदी है।
This is a charming book that challenges the stereotypical roles of adult-child and mother-father with fun and simplicity. The illustrations are quirky, with a sense of character and space, adding a layer to the narrative. The writing is rhythmic, interspersed with humour for readers across ages. A great example of how illustrations and text should come together in books for early readers!