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बेटा करे सवाल – एक समीक्षा

अनु गुप्ता और संकेत करकरे द्वारा लिखित; कैरन हेडॉक पारमिता मुख़र्जी द्वारा चित्रित | एकलव्य प्रकाशन | २०२२

हिन्दी में ऐसी किताबें अभी भी कम हैं जो सहानुभूति के साथ वैज्ञानिक दृष्टि से किशोरों और किशोरियों की दैहिक-मानसिक समस्याओं पर बेहिचक बात करें और उचित राय सलाह दे सकें। ‘बेटा करे सवाल’ ऐसी ही एक ज़रूरी किताब है। इसे एकलव्य ने प्रकाशित किया है। इसके पहले ‘बेटी करे सवाल’ पुस्तक आयी थी और उसका अच्छा असर पड़ा था। अब उसी श्रृंखला की यह अगली किताब बेटों के सवालों यानी किशोरों के सवालों पर केन्द्रित है। किशोरों और नवपुरुषों के सवालों और अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक की रचना हुई है। सवालों के जवाब इस तरह प्रस्तुत किए गये हैं कि कुछ भी ज़रूरी छूटने न पाए। और किताब किशोरों के एकांत की भी वयस्क साथी बन सके। किताब कई पहलुओं पर चर्चा करती है, जैसे कि शारीरिक और भावनात्मक बदलाव, बदलती हुई पहचान, किशोरों के रिश्ते, व्यसन, प्रजनन-क्रिया को समझने की जिज्ञासा, अपनी समुचित देखभाल, पितृसत्तात्मक मूल्यों तथा फ़िल्म एवं मीडिया का विचार और व्यवहार पर असर। अनेकानेक चित्रों, रेखांकन, फोटो और सारिणी के सहारे जटिल बातों को भी आसान बनाकर समझाया गया है।साथ ही स्त्री शरीर की संरचना आदि का भी यथोचित ज़िक्र किया गया है ताकि हर प्रकार की झिझक दूर हो सके।

बेटा करे सवाल

बेटी करे सवाल

दस अध्यायों में विभक्त इस किताब के पहले अध्याय का शीर्षक ही पाठक को सीधे विषय में ले चलता है—अब हम जवान होंगे। भाषा बोलचाल वाली है और लहजा आपसी बातचीत का है। इतना खुलकर बात की जा रही है कि सारी दूरियाँ मिट जाती हैं। मसें भीगना, लंबाई बढ़ना, चिड़चिड़ापन, माँ से अनबन, शरीर में हो रहे बदलाव—सब पर बात की जाती है। सहज दैहिक क्रियाओं और अंग विशेष की आकृति आदि पर भी।

दूसरा अध्याय ‘किशोरावस्था में कदम’ कई किशोरों के अनुभवों को साझा करते हुए शरीर की रासायनिक प्रक्रियाओं और भावनाओं, तनावों आदि की चर्चा करता है।आख़िर में सावधान भी करता है कि उत्तेजना पर क़ाबू रखना और सतर्क रहना चाहिए।

‘हँसते रुलाते रिश्ते नाते’ बहुत उपयोगी अध्याय हैं। यह उम्र नाजुकमिजाजी के लिए जानी जाती है। ऐसे में माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त और रिश्तेदारों के साथ कैसे व्यवहार करें और किसी स्त्री के प्रति आकर्षण को कैसे समझें। यहाँ पोर्न की भी चर्चा है, साथ में हिदायतें भी। सबसे बड़ी हिदायत यह कि सभी संबंधों का मूल आधार है प्रेम, परस्पर सम्मान और भावनात्मक लगाव।

अगला अध्याय यौन संबंध, प्रजनन और सभी संबद्ध पक्षों का विस्तार से वर्णन और विश्लेषण करता है। कुछ भी छुपाया नहीं गया है। एक सच्चे दोस्त की तरह कहा गया है कि ‘तुम अपने साथी के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होवोगे। लड़का लड़की में भेद नहीं मानोगे और सुरक्षित वैवाहिक जीवन बिताओगे।

इसी के साथ नशे के विरुद्ध चेतावनी भी है। यही वो उम्र है जब कोई बनता या बिगड़ता है। ग़लत संगत से बचना भी ज़रूरी है। नशे की लत ख़राब है, लेकिन जिसे लत लग गयी उसका इलाज भी संभव है। पूरी किताब में ज़ोर सुधार पर है, प्रेम और सहानुभूति पर। यौन रोगों से बचाव और, हो जाने पर, इलाज भी ज़रूरी है। इतने विस्तार और खुलेपन से इन ‘वर्जित’ विषयों पर बातचीत दुर्लभ है।

पहचान विषयक अगला अध्याय बताता है ‘अपने आप को स्वीकारना और अपने ऊपर विश्वास करना ताकि एक सकारात्मक व्यक्तित्व बन सके। इसलिए अपनी निजता, प्रतिभा और रुझान को ठीक ठीक पहचानना ज़रूरी है। ऐसा क्या है जो तुम्हें ‘तुम’ बनाता है? वही करना चाहिए जो हम करना चाहते हैं। और हर किशोर को चाहिए कि वह अपनी भावनाओं को समझे, उन्हें सामाजिक बनाए और नियंत्रण में रखे।

नवें अध्याय में ‘मर्द’ संबंधी प्रचलित धारणाओं का विश्लेषण करते हुए यौन हिंसा, मीडिया जनित हिंसात्मक विचार, एकसिरताज वाली प्रवृत्ति सबकी भर्त्सना करते हुए समझाने की कोशिश की गयी है कि ग़ैर-बराबरी की भावना और दूसरों के अधिकारों का हनन हमें पतित करता है। और आख़िरी बात यह कि इस उम्र में पौष्टिक भोजन और खेल कूद, व्यायाम बहुत ज़रूरी हैं। निरोग रहना, छोटी मोटी शारीरिक गड़बड़ी को समझकर इलाज कराना और अच्छी नींद सबसे ज़रूरी है। अंत में विस्तृत संदर्भ सूची भी है और प्रत्येक अध्याय के साथ संदेश-सारांश भी। इतने चित्र हैं कि कुछ भी दुरूह नहीं रह जाता।

यह पुस्तक, चौड़े आकार में १४६ पृष्ठों वाली, महँगी भी नहीं है। यह पुस्तक किशोरों के लिए तो बेहद ज़रूरी है ही, हर पुरुष के लिए ज़रूरी है। इसे पढ़कर हम अपने शरीर, मन, और जीवन को बेहतर समझ सकते हैं। दूसरों को भी अधिक स्नेह और सम्मान दे सकते हैं। यह पुस्तक प्रत्येक किशोर को नेक इंसान बनने में सहायक होगी।

इस पुस्तक को हर घर, हर पुस्तकालय और हर किशोर के हाथ में रहना ही चाहिए। सरकार और संस्थाओं को चाहिए कि इसको अधिक से अधिक बाँटें और चर्चा करें। एक किशोर के सही निर्माण का मतलब है एक सही समाज का निर्माण—प्रेम और सहानुभूति की नींव पर बना समाज।

बेटा करे सवाल पराग ऑनर लिस्ट २०२३ का हिस्सा है।

आप इस किताब को यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं।

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