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जिरहुल

फूलों के ज़रिए यह रचना संथाल जीवन और प्रकृति की एक-साथ बसी हुई दुनिया को बहुत सादगी से सामने लाती है। जसिन्ता जिरहुल, पलाश, जटंगी जैसे फूलों को सिर्फ़ उनके रंग-रूप में नहीं, बल्कि जंगल, लोगों और उनकी यादों के उतार–चढ़ाव में पहचानती हैं। उनकी सरल पर चुभती अभिव्यक्ति प्रकृति से हमारी बढ़ती दूरी को उभारती है। जंगली फूलों की अपनी अलग सुंदरता हमें दिखाती है कि प्रकृति हर बदलाव में नई खूबसूरती ढूँढ लेती है, जबकि हम अक्सर ऐसा नहीं कर पाते।

Jugnoo Prakashan (Ektara) 2024 Jacinta Kerketta Kanupriya Kulshrestha