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लोकभाषा में रची यह कविता यथार्थ और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण है। इसमें भैंस की पाड़ों की खूबसूरती, फुर्ती, दौड़ और चंचलता—सबका मोहक वर्णन मुखर लय और सुगठित छंद के माध्यम से, तथा दैनिक बिंबों के सहारे किया गया है। इसका पूरा आनंद कविता के सस्वर पाठ से ही मिल सकता है।
“धुन्ना कै पँड़िया” जीव-जगत के सौंदर्य का समारोह है और साथ के चित्र-रंग तथा गति-अंकन पाड़ी के सौन्दर्य का नायाब मूर्तन।