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‘बस्ती में बाढ़’ रचनाकारों की आपबीती पर आधारित तीन कथाओं का संग्रह है जो गरीब बस्ती में अचानक आयी बाढ़ की त्रासदी और मनुष्य के जीवट का बोलचाल की भाषा में वर्णन करता है।दुख और मुसीबतों के बीच भी यहाँ कुछ हँसने और खुश होने की गुंजाइश निकल आती है।साथ ही साथ ये कहानियाँ कुछ सवाल भी करती हैं—क्या बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा है या हमारा समाज भी इसके लिए ज़िम्मेवार है।किताब के अंत में एक लेख भी है जो इन सवालों पर चर्चा करता है।
कहानी सशक्त है और समाज के उस वर्ग की परिस्थितियों के यथार्थ और मानवीय रिश्तों को दिखाती है जिनकी जगह आम बाल साहित्य में विरले ही मिलती है। कहानी में बच्ची का नाम मिट्टी ही बहुत कुछ कहता है। उसकी एक स्वाभाविक लेकिन असम्भव-सी इच्छा को पूरा करने के लिए माँ के सूझबूझ भरे जतन बच्चे के लालन-पालन की सीमाओं को एक अलग सन्दर्भ देते हैं । चित्र सहज सादगीपूर्ण और कहानी को बोलते-कहते लगते हैं। आठ पेज़ की एक रंगी छोटी-सी किताब कहानी के मामले में उम्दा है। बाल साहित्य में इस तरह की कहानियों का सादगी और सस्ते में आना सुकून देता है।