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1. आपने अपना अधिकांश जीवन बड़ों/वयस्कों के लिए लिखते हुए बिताया है।पिछले कुछ वर्षों में आपको बच्चों के लिए लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
बच्चों की पहली कहानी ‘मिट्टी की गाड़ी‘ किसी प्रेरणा ने नहीं, चुनौती ने लिखवायी थी। मैंने बचपन में बाल साहित्य पढ़ा बहुत था, पर कभी कुछ लिखा नहीं था। बहुत बाद में, बच्चों के लिए कहानी लिखने की चुनौती सामने आयी। ‘मिट्टी की गाड़ी‘ वही कहानी थी। फिर लिखता रहा। जरूरी नहीं होता कहानी हमेशा प्रेरणा से लिखी जाए। संकट, नाउम्मीदी, द्वन्द्व, स्वप्न, सब कहानी लिखवाते हैं।
2. क्या बच्चों के लिए लिखना बड़ों के लिए लिखने से एक अलग प्रक्रिया और अनुभव है? आपके लिए यह अनुभव कैसा रहा है?
हाँ, लिखने की प्रक्रिया भी अलग है और अनुभव भी। बच्चों के लिए लिखना, भाषा और कन्टेन्ट के स्तर पर अलग प्रक्रिया होती है। बच्चों के लिए भाषा सरल रखनी होती है, वाक्य छोटे और शब्द बोलचाल की जबान के रखने पड़ते हैं। कल्पनाशीलता को फैलाव देना होता है। बिम्ब, उनके जीवन के इर्द-ं-गिर्द की चीजों से उठाने होते हैं। बड़ों के लेखन में हम समाज की कुरूपताओं विकृतियों, पतन और मूल्यहीनता पर खुली बात करते हैं। राजनीति, धर्म, इंसानी रिश्तों की जटिलताओं पर लिखते हैं। बच्चों के लेखन में इसे बचाते हैं। लिखते भी हैं तो ‘आदर्श‘ के आवरण में। आपने अपने अनुभव के बारे में पूछा है। बच्चों के लिए लिखने का अनुभव हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है और इसलिए यह अनुभव सुखद है। बच्चे ही आने वाले समय समाज और मनुष्य का बीज हैं। उनके लिए लिख कर खुद को भी आने वाले कल के हर पल से जुड़ा महसूस करता हूँ।
3. जब से आप बच्चों की किताबें पढ़ रहें हैं तब से आपने हिंदी बाल साहित्य की प्रकृति और प्रवृत्ति कोई बदलाव महसूस किया है?
बहुत बदलाव आया है। पहले बच्चों की ‘कंडीशनिंग‘की जाती थी। नीति, उपदेश, कथित आदर्श चरित्र किताबों का हिस्सा होते थे, या फिर राजा, परी, दैत्य, फूल, चिड़िया वगैरह। तब समाज और जीवन अपनी कठोर सच्चाइयों और कुरूपताओं के साथ बच्चों के सामने नहीं रखा जाता था। अब यह सब बच्चों के साहित्य का हिस्सा है। उनसे छिपाया नहीं जाता। मैं अपने लेखन में बच्चों को जीवन के ऐसे ही सूक्ष्म अनुभवों से जोड़ने की कोशिश करताहूँ। उसे उनकी चेतना का हिस्सा बनाता हूँ। उनका मनोरंजननहीं करता। भाषा के कौतुक नहीं रचता। इसके अलावा छपायी, चित्र, प्रोडक्शन में बहुत ज्यादा सुधार आया है।
4. हिंदी बाल साहित्य में ‘नाचघर’ एक लोकप्रिय उपन्यास है। इसके लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली और इसकी लेखन प्रक्रिया कैसी रही?
‘नाच घर‘ भी एक चुनौती की तरह ही लिखा गया था। दो बच्चों की प्रेम कथा लिखने की चुनौती थी। वयस्कों के उपन्यास या कहानी में प्रेम पर लिखना कतई कठिन नहीं होता। पर बच्चों के लिए लिखने में कई बंधन, कई अंकुश थे। ‘नाच घर‘ दो अलग धर्मों के बच्चों की प्रेम कथा है। भाषा, संवाद, चरित्र, किशोर अवस्था के नए जन्मते अनुभव व दो धर्मों को एक साथ साध कर चलना था। एक साल लगा इसे लिखने में। इसे लिख कर गहरी संतुष्टि मिली थी। बहुत आनन्द आया था।
5. आपने बच्चों के लिए पाँच किताबें लिखी हैं, जो प्रकृति में एक-दूसरे से भिन्न हैं — उपन्यास, कहानी संग्रह आदि। इन अलग-अलग कहानियों को लिखने का आपका अनुभव और सफ़र कैसा रहा?
यह सब मैं काफी समय से लिखता चला आ रहा हूँ। इस तरह अलग अलग विषयों और विधाओं की चीजें लिखने का अनुभव तो था ही। यह सफ़र इसलिए मज़ेदार था, कि पड़ाव बदलते रहते थे। इतिहास, उपन्यास, कहानी की प्रकृति और रचना प्रक्रिया अलग तो होती ही है, इसलिए एक से दूसरे में जाना ताज़गी और नएपन का अहसास देता था। बच्चो के लिए इतिहास की पहली किताब भारत आने वाले विदेशी यात्रियों और उनकी लिखी किताबों पर थी। खुद कभी पहले इस तरह नहीं सोचा था। लिखने के लिए इन यात्रियों के बारे में पढ़ा, तो मेरी जानकारी भी बढ़ी। उपन्यास लिखने में एक साल लगा। एक साल तक दो बाल चरित्रों के साथ रहना और भाषा तथा संवादो को पूरी तरह बदल कर लिखना बिल्कुल नया अनुभव था। दो बच्चों के एक दूसरे के प्रति प्रेम को महसूस करने के लिए खुद को उस उमर में ले जा कर सोचना पड़ता था। कहानियाँ भी लिखीं तो जीवन में कौंध की तरह आए सूक्ष्मतम अनुभवों पर लिखीं। बच्चों की कहानी में इन्हें नहीं उतारता तो शायद ये अनुभव छूट जाते।
6. विशेष रूप से हिंदी में पठन संस्कृति को मजबूत करने के लिए क्या किया जा सकता है?
बच्चों की पठन संस्कृति को सिर्फ माँ-बाप शिक्षक ही मजबूत कर सकते हैं। उन्हें किताबें देकर, उनसे किताबों के बारे में बातें करके, घर में लाइब्रेरी बना कर। पर शायद ही माँ बाप बच्चे को कोर्स के अलावा कुछ पढ़ने देते हैं। मैंने देखा है, बच्चा कविता लिखने लगे तो ये परेशान हो जाते हैं। कम्प्यूटर और मोबाइल ने पठन संस्कृति को तेजी से खत्म किया है, बढ़ाया नहीं है। यह भ्रम है कि उससे पढ़ने की सुविधा और चेतना बढ़ी है। पुस्तकों के बगैर कोई पठन संस्कृति विकसित नहीं हो सकती। फिलहाल तो मैं केवल यही राय दे सकता हूँ, माता-ंपिता और शिक्षक पहले खुद पढ़ें, तभी बच्चों को पढ़ने के लिए उत्साहित कर सकते हैं। बच्चों के अंदर पठन संस्कृति को हमारी शिक्षा प्रणाली सबसे ज्यादा नष्ट कर रही है। इस पर बात करने के लिए बहुत लिखना पड़ेगा।
7. आपके अनुसार, बच्चों के साहित्य को बढ़ावा देने में पुरस्कार क्या भूमिका निभाता है?
पुरस्कार बेशक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पहली तो यही, कि पुरस्कार बाल साहित्य की एक अलग सत्ता, अलग जगह बनाता है। साहित्य की अनेक विधाओं से अलग, एक महत्वपूर्ण विधा और वर्ग के रूप में बाल साहित्य की उपस्थिति और महत्व दर्ज कराता है। बच्चों की किताबों के लिखे जाने, पढ़े जाने की जरूरत को बड़े स्तर पर स्वीकृति दिलवाता है। इसकी जमीन तैयार करता है। बच्चों के लिए अच्छे साहित्य के लिखे जाने, नए कौतुक भरे प्रयोगषील चित्र बनाने और पुस्तकों के सुंदर प्रकाशन को बढ़ावा देता है।
8. पराग ऑथर प्राइज मिलने पर आपको कैसा लग रहा है?
अच्छा। इसलिए ज्यादा अच्छा कि बच्चों के काम पर यह पुरस्कार मिला है। उस काम को स्वीकृति मिली है, जो मैंने बहुत बाद में शुरू किया। मेरे लिए इस पुरस्कार का मिलना, किसी भी अन्य पुरस्कार से बड़ा और अलग इसलिए है, क्योंकि यह बच्चों की निर्दोश, पवित्र, उज्जवल दुनिया से मेरे जुड़ने को स्वीकृति व मान्यता दे रहा है।