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किताब: मेरी ज़मीन मैं बचाऊँगी
लेखन: रिन्चिन
चित्रांकन: सागर कोल्वंकर
प्रकाशक: तूलिका
ज़मीन हड़पने, उचित मुआवजा न मिलने, अपनी ही ज़मीन से बेघर किये जाने और कई तरह के उत्पीडन का विरोध देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है| ये खबरें कभी सुनने में आती हैं और कभी, नहीं| कहीं विरोध की आवाज़ को ख़बरों और कहानियों या गीतों में जगह मिलती है और कभी नहीं| बच्चों के लिए लिखी रिनचिन की ये कहानी, इस वजह से अपने-आप में महत्वपूर्ण बन जाती है| मैं तो बिल्ली हूँ और सबरी के रंग जैसी कहानियाँ लिखने वाली रिनचिन हमें उन मुद्दों से रूबरू करवाती हैं जो अक्सर बच्चों की किताबों की ‘रंग-बिरंगी, काल्पनिक दुनिया’ से दूर रखे जाते हैं| ये घटनाएं, देश में कई बच्चों के जीवन का हिस्सा होती हैं पर यह पक्ष, बाल साहित्य से अक्सर गायब रहा है| ये कहानी जीवन के सत्य की कई परतें खोलती हैं, चाहें वो जल-जंगल-ज़मीन आर महिलाओं के अधिकार और मेहनत की बात हो, जातिवाद, जनजातीय भूमि विवाद, सरकारी दांवपेच, खान कारखानों का माफिया, कंपनी के दलाल और इन सबके के बीच एक छोटी सी लड़की और उसकी ज़िन्दगी| माटी, अपनी अज्जी और अपने पिता के साथ छत्तीसगढ़ के इलाखे में रहती है| अभी उसे अज्जी से अपनी ज़मीन हासिल ही होती है कि ज़मीन जाने का डर मंडराने लगता है| सारा गाँव इस द्वन्द और दलाली के खेल में उलझ जाता है| माटी का बचपन भी इस लड़ाई का हिस्सा बनता है| रिनचिन ग्रामीण ज़िन्दगी की इस असलियत को उसकी मौजूदा चुनौती के साथ प्रस्तुत करती हैं और इस प्रस्तुतीकरण में कोई बनावट नहीं है| कहानी में जगह-जगह माटी कि अपनी भाषा को टेक्स्ट में बड़े स्वाभाविक तरीके से पिरोया गया है| एक जगह माटी के हक़ उसके अपने शब्दों में गूंजते हैं ‘ मोर डोली हे!’
चित्रांकन साधारण हैं और टेक्स्ट से आगे और कुछ नहीं जोड़ पाते हैं| पर टेक्स्ट में ताकत है| ये लड़ाई किसी अंत तक नहीं पहुँचती पर आपको बहुत कुछ सोचने के लिए छोड़ देती है|
बच्चों के भीतर झाँकने की एक खिड़की हैं ये किस्से। और नए चश्मे से देखेंगे तो और भी बहुत कुछ नज़र आएगा। बच्चों के लिए बहुत सारी कहानियाँ बनती हैं, लिखी जाती हैं और कई उन्हें सुनाई भी जाती हैं।…
Libary Educators Course 2014 concluded