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कुछ साल पहले ही पराग के एल.ई.सी. कोर्स की जानकारी मुझे मिलीऔर इस साल मुझे भी इस कोर्स में सहभागी होने का सोभाग्य प्राप्त हुआ।
एल0ई0सी कोर्स की संरचना विचारपूर्वक ढंग से की गयी है। मूडल का इस्तमाल,विविध आलेख पर चर्चा, विशेषज्ञो से बातचीत, हर सत्र की रचना में लाइब्रेरी के विविध आयामो पर छोटे ग्रुप में काम किया गया। लाइब्रेरी के आयामों को लेकर मूल्यांकन की समझ कैसे विकसित हो सकती है इस की झलक हमने संपर्क अवधी में मिली।
बुक टॉक, रीड अलाउड, खजाना की खोज,डिस्प्ले – ये सारी गतिविधियां मुझे बहुत आकर्षक और उपयोगी लगीं। पुस्तक समीक्षा, किताब पर चर्चा, अलग अलग स्वरूप के प्रश्न पर किये गये असाइनमेंट और लगातार मेंटर के साथ होने वाली बातचीत और मार्गदर्शन से अच्छा बालसाहित्य कैसे पहचाना जाय, कैसे इस्तमाल किया जाय – इस बारे में हमारा कौशल बढाया गया।
शिक्षा का अर्थ/उद्देश्य समझते हुये,लाइब्रेरी के माध्यम से शिक्षक/लाइब्रेरियन की भूमिका में अपना काम अधिक परिणामकारक बनाने का रास्ता दिखाई दिया। अपने स्कूल की लाइब्रेरी को अधिक जीवंत कैसे कर सकते है – इस विश्वास के साथ प्रयत्न करना शुरू किया, तभी कोरोना वजह से स्कूल मार्च महिने से अब तक बंद हो गयी।
युद्ध की स्थिती हो,या फिर कोई और मुश्कील हो,ऐसे समय में बच्चो तक कहानी,किताबे पहुंचने की जरुरत सबसे अधिक होती है। लाइब्रेरियन के प्रयास,लगन,अपने काम पर निष्ठा किस हद तक लाइब्रेरी को जिवंत कर सकता है यह बात कोर्स के दौरान बहुत प्रभावी तरीके से हमें बताई गयी थी। यह बाते हम ने ‘मिस मूर की कहानी’और‘गधे पर सवार पुस्तकालय’ कितबों से भी सीखी थी,लॉकडाउन के समय एल0ई0सी की दी यह सीख हमने अपना ली।
अब हम लोग गुगल क्लास रूम की माध्यम से बच्चो के संपर्क में है,पढने – पढाने में बहुत सी कठिनाइयाँ तो आ रही है,लेकीन हमने बालवाडी और कक्षा 1 से 9 तक के लिए ऑनलाइन लाइब्रेरी शुरू कर दी है। गतविधियों के साथ- साथ,सशक्त तरीके से ,इंटरैक्टिव लाइब्रेरी बच्चो तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे है। हर हफ्ते बच्चों तक एक नयी कहानी/किताब का विडियो या ऑडीओ और रीड अलाउड भेजे जाते है। बच्चे कहानी केआधार पर गतिविधियां अपने घर में करते है,जैसे कि – चित्र बनाते है, अपने मन में आये विचार, दीदी के द्वारा किये सवालों के जवाब लिखकर इन सब के फोटो गुगल क्लासरूम पर भेजतें है। कभी कभी अभिभावक भी इस कार्य में बच्चो की मदद कर रहे होते हैं, छोटे बच्चो को कहानी पढकर भी सुनाते है। और कुछ बच्चे तो मेरे घर में भी यह किताब हैं, बोल कर किताब की फोटो भेजते हैं।
६ अगस्त हिरोशिमा दिन पर हमने बच्चों को ‘सडाको और कागज़ के पक्षी’ कहानी भेजी थी। कहानी पढ़ कर सातवीं कक्षा के बच्चों ने अपनी प्रतिकृया लिखकर भेजी। एक बच्ची ने लिखा- “कहानी पढ़ कर मैं रो पड़ी, युद्ध बहुत बुरा होता है”, दूसरे बच्चे ने लिखा “मुझे हना की सूटकेस किताब याद आ गई”, किसी ने लिखा “मैं भी एक पंछी बनाकर सडाको के स्मारक पर जाना चाहती हूँ” । किसी को महाभारत का युध्द और दो भाई में हुआ युध्द याद आ गया।
साथ ही साथ, पुरी कक्षा ने पंछी बनाया, और फिर पंछी की तस्वीर खींच कर भी भेजी।
बच्चों की ऐसी प्रतिकृयाएं पाकर मुझे लगता है ,अगर मै उनको सिर्फ विषय पढ़ाती ,तो बच्चे शायद यह सब बाते मेरे साथ कभी नही कर पाते, लॉकडाउन में बच्चो के साथ,अनेक विषयो पर सार्थक संवाद हो रहा है।
मैं अपने स्कूल के लाइब्रेरियन की भी मदद कर पाती हूँ। उनके काम को लेकर फीडबैक,सुझाव देती रहती हूँ। इससे मेरी भी बहुत सी कहानियो पर, अलग अलग उम्र के बच्चों के साथ अभ्यास हो जाता है।
इस कोर्स के कारण लाइब्रेरी के काम में मेरी स्पष्टता बढी है| नए सोश्ल साइट, रिसोर्स मालूम हुये है – उस पर रोज नयी कहानिया पढती हूँ,साक्षात्कार सुनती हूँ और बाल पत्रिका एवं संदर्भ जैसी पत्रिका भी पढ़ती हूँ। इन सब का उपयोग मेरे स्कूल की सहकारी शिक्षक,लाइब्रेरियन भी करतीं है| हिंदी भाषा से पहले अधिक परिचय नही था, लेकिन अब उसकी ललक सी पैदा हो गयी है। हिंदी के उत्तम बालसाहित्य और साहित्कार से परिचय हुआ है। साथ में महाराष्ट्र के बच्चो के लिये उपलब्ध मराठी साहित्य, प्रकाशन का संग्रह बढाना शुरू किया है।
यह अनुभव मुझे और मेरे काम को समृद्ध कर रहा है।
When ‘Jamlo Walks’ with Children
Chandrika Kumar, …yr old, from a village in Okra, Khunti district of Jharkhand, shared her response after listening to ‘Jamlo Walks’…