Loading...

स्कूल हमारी संस्कृति का ही एक हिस्सा है। समाज का ऐसा उपक्रम जो समाजीकरण के लिए जरूरी मौके, साधन और वातावरण उपलब्ध कराता है। पर क्या स्कूल ये धारणा भी बनाता और मजबूत करता है कि हमारे बड़े- बूढ़े बुजुर्ग आउट डेटेड हैं, पिछड़े हैं और अब अप्रासंगिक हो गए हैं?

पराग के सहयोग से एकलव्य द्वारा तैयार की गई किताब ‘स्कूल में ताता’ इस द्वन्द्व को उभारती हुई ऐसी किताब है जो बच्चे के मनोविज्ञान को आधार बनाकर इस विषय पर बात करती है।

अगर किताब की बात करें तो ओवियम एक पाँच छः साल की बच्ची इस समस्या का सामना करती है, जब उसके स्कूल में ग्रैन्ड पेरेंट्स डे मनाया जाना है और अपने ताता को स्कूल लाने के लिए उसे न्योता की पर्ची मिली है।

ओवियम स्कूल में सबके सामने अपने ताता को ले जाने से बचना चाहती है। पूरी किताब में यह संघर्ष और उठापटक है कि कैसे भी करके इस स्थिति का सामना न करना पड़े। लेकिन यह कौन सी बात है जो छः साल की ओवियम के लिए उसके सबसे प्यारे ताता को अचानक एक समस्या, एक बोझ बना देती है।

ओवियम इसे टालने के लिए क्या क्या नहीं मनाती है; कार बिगड़ने से लेकर, आयोजन कैंसिल होने, बाढ़ में स्कूल डूब जाने या उल्का पिंड गिरने तक की कामना वह करती है। उसकी यह उलझन कितनी बड़ी है कि ताता अपनी पारंपरिक पोशाक यानी लूँगी कुर्ता और उपर्णा में स्कूल स्कूल न जाएं।

ओवियम स्कूल से मिले न्योता वाली पर्ची को डस्टबिन में डालकर एक तरह से इस समस्या से आँख मूँद लेती है। ‘अच्छा छुटकारा मिला’ यह वाक्य काफी भारी है और छुटकारा पाने के बाल सुलभ तरीके की तरफ इशारा करता है लेकिन एक मनो- सामाजिक समस्या मुँह फाड़े खड़ी ही रहती है कि सबसे प्यारे ताता जो साथ खेलते हैं, किस्से कहानियाँ सुनाते हैं, जो हर छोटी-बड़ी बातों के एकमात्र राजदार हैं, जिनका साथ ओवियम के लिए सबसे प्यारा साथ है वह स्कूल ले जाए जाने के लिए अनुपयुक्त, अप्रासंगिक और अनफ़िट कैसे हो गये?

कहानी में नाटकीय मोड़ तो तब आता है जब खेल- खेल में डस्टबिन को उलट- पुलट कर उसका प्यारा डॉगी पायरो उस पर्ची को उजागर कर देता है और वह एक दुर्घटना की तरह ताता के हाथ लग जाती है। इसके बाद का किस्सा ओवियम की उसी कशमकश का हिस्सा है।

तबीयत खराब होने का बहाना कर ओवियम इस आफत को टालने की पहली और कमजोर कोशिश करती है। ग्रैन्ड पेरेंट्स मीटिंग में जाने की बजाए बगीचे में पिकनिक का प्रस्ताव रखती है, लेकिन कुछ कारगर नहीं होता। उसे रात में इस भयानक ख्वाब का ही सामना करना पड़ता है कि स्कूल में बच्चे ताता का मजाक उड़ा रहे हैं और हँस रहे हैं। और फिर आखिरी हल जो वह ढूंढती है वह है ताता के लिए एक अच्छी सी पैन्ट तलाशने की पहल जिसे ताता नकार देते हैं।

ओवियम के शब्द हैं “ये मेरी जिंदगी के सबसे बुरे दिन हैं”। वह नहीं चाहती है कि ये रात कभी खत्म हो, नहीं चाहती कि सुबह हो। एक तरफ ग्रैन्ड पेरेंट्स डे के आयोजन में जाने के लिए ताता का उत्साह है और दूसरी तरफ ओवियम की उलझन।

ताता के साथ स्कूल के लिए निकलने तक ओवियम हर संभव कोशिश करती है पर कहानी को तो बढ़ते जाना है इसलिए वह बढ़ती है और ताता स्कूल पहुंचते हैं। पर ओवियम उन्हें स्कूल के अंदर छोड़कर बगीचे में छुप जाती है और किसी तरह इस वक्त के बीत जाने का इंतजार करती है।

परिधानों के मार्फत सांस्कृतिक विविधता, बड़े बुजुर्गों के साथ लाड़- प्यार, मान-सम्मान और उनका सान्निध्य, स्कूल एक मंच जहां ग्रैन्ड पेरेंट्स को जगह मिली है, यह सब ओवियम के संकट के सामने बौने साबित हो रहे हैं।

तो क्या यह ओवियम का महज एक झूठा डर है या समय के ग्राफ में पीढ़ियों का अंतर जिसे बाजार की चकाचौंध, आधुनिकता की होड़ और सोशल मीडिया के द्वारा रचे गए संसार ने और गहरा दिया है ?

निजी स्कूलों के ढांचे, उनकी कार्य प्रणाली और नजरिये को देखने पर समझ में आता है कि स्कूल के लिए एक सिंथेटिक माहौल बनाया हुआ है जिसमें शिक्षकों, सहायकों, प्रबंधकों और बच्चों के लिए ड्रेस कोड है, स्मार्ट क्लासेज़ हैं, तमाम तरह के आइडेंटिटी टोकन हैं और एक ऐसा सालाना कैलेंडर है जो बाजार के साथ कदमताल करता है।

ऐसा स्कूली सिस्टेम बच्चों के भीतर एक अलग दुनिया का ख्वाब बुनता है। स्कूल की परिपाटी, उसका अनुशासन, औपचारिक वातावरण, संवाद की भाषा, और जड़ों से कटकर सफलता और उपलब्धियों का गुब्बारा फुलाना एक नई तरह का समानांतर सिस्टम खड़ा करता है। ओवियम कहीं उसी स्कूली सिस्टम की शिकार तो नहीं ?

जब हम ‘स्कूल में ताता’ किताब पढ़ते हैं तो ये सारे सवाल जेहन में उठते हैं। गौतम बेनेगल के बनाए कॉमिक्स स्टाइल में कार्टूननुमा चित्र बहुत ही सहज सजीव और जुड़ाव बनाने वाले हैं। हर एक चित्र में चंद रेखाओं के माध्यम से पात्रों की भाव भंगिमा इतनी स्पष्ट बनाई गई है कि देखकर दिल खुश हो जाता है। ओवियम के डॉगी पायरो के द्वारा डस्टबिन को उलट- पलट करने वाला चित्र उस पेज में एक हलचल पैदा कर देता है। डस्टबिन के गिरने पलटने और उसके साथ पायरो के खेलने की इतनी छवियाँ हैं कि उससे पेज में दृश्य की गति का एहसास होता है। पेज में मुख्य चित्रों की पृष्ठभूमि में ओवियम की डायरी के पन्नों पर पेंसिल की लिखावट और चित्रकारी एक समानांतर कहानी भी कहते चलते हैं, जो कहानी और उसकी परिस्थियों को नया आयाम देते हैं। रात का बुरा ख्वाब कमाल ढंग से चित्रित किया गया है। इसी तरह आयोजन कैंसिल होने की ओवियम की कामनाओं में स्कूल में मधुमक्खियों के हमले और शहर में डायनासौर के आक्रमण की चित्र कल्पना जबरदस्त है।

ताता स्कूल पहुंचकर खुद को कैसे प्रस्तुत करते हैं ? बाकी लोग उन्हें किस तरह स्वीकार करते हैं ? और ओवियम अंततः कैसा महसूस करती है ? यही इस किताब का हासिल है जोकि अंत में ही हासिल होता है।

About All of Us

This National Unity Day on October 31st, read and discuss Parag books that celebrate the unique diversity of our country and the world at…

Tuhina Sharma Parag Reads 31th October 2023 English

A Day with Kahaaniwali Nani

“In times of trouble, libraries are sanctuaries” – Susan Orlean, The Library Book.And so they are, at least in the pediatric cancer…

Tuhina Sharma Parag Reads 11th September 2023 English