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महामारी के दौर में लोग घरों में बंद किए जा सकते हैं, लेकिन कहानियों को कभी कैद नहीं किया जा सकता। – प्रभात कुमार झा, बालबीती की भूमिका ‘बंद शहर की कहानियाँ’ में।

हवामहल का 101 वाँ अंक राजस्थान दिवस (30 मार्च 2022) के अवसर पर जारी किया गया। झीलों की नगरी कहे जाने वाले उदयपुर के कलांगन (सहेलियों की बाड़ी परिसर का कला दीर्घा) में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में निदेशक प्रियंका जोधावत और संयुक्त निदेशक, शिवजी गौड़, RSCERT उदयपुर द्वारा इस अंक का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर RSCERT उदयपुर के शिक्षक-शिक्षिकाएँ, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय देवली के प्रतिभागी छात्र-छात्राएँ, प्रधानाध्यापक, लाइब्रेरी शिक्षक एवं राजस्थान स्कूल पुस्तकालय संवर्धन परियोजना अंतर्गत राजसमंद जिले के दोनों राज्य संदर्भ समूह के सदस्य सहित हवामहल पत्रिका में सहयोगी संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इस आयोजन में राजस्थान थीम पर आधारित डिस्प्ले, बच्चों की चित्रकारी एवं कला की रचनात्मक दीवार साहित पाठक रंगमंच एवं हाऊ-हाऊ-हप्प कविता संग्रह पर बच्चों की प्रस्तुतियाँ मुख्य आकर्षण रहे। निदेशक महोदया ने अपने अभिभाषण में बताया कि यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। इससे पूर्व डॉ. बी. डी. कल्ला, शिक्षा मंत्री, राजस्थान सरकार और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक दिन पूर्व जयपुर में हवामहल के 101 वें अंक के पोस्टर का लोकार्पण किया था।

शिक्षा के लिहाज से साल 2020-21 को देखें तो इस एक साल में जो हुआ वैसा कभी नहीं हुआ। इससे पहले कभी दुनिया भर के इतने बच्चों की पढ़ाई एक साथ नहीं रुकी. 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने कोविड-19 पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करके भी इसी बात की पुष्टि की. ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के महासचिव एंतिनियो गुटेरेश ने बताया था कि कोरोना-काल में 165 देशों के स्कूल और अन्य शिक्षा संस्थान बंद रहे। इससे डेढ़ अरब से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई। इस दौरान छह करोड़ से ज्यादा शिक्षक भी स्कूलों से दूर रहे देखा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि खासकर शिक्षा के नजरिए से मौजूदा संकट बहुत बड़ा है। लेकिन, यह भी हकीकत ही है कि इस संकट से उभरने के लिए साल 2020-21 में जो समाधान ढूंढ़े गए उनका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. कहा जा सकता है कि अभूतपूर्व संकट में भी यह शिक्षा के लिए सबसे बड़ी संभावनाओं का साल रहा है, क्योंकि, इस साल शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कई नवाचारों से न सिर्फ शिक्षा की दिशा बदलेगी, बल्कि कहीं-कहीं उसके ढांचे में सुधार की गुंजाइश बनेगी. इसके अलावा, शिक्षण की पद्धतियों में हो रहे तरह-तरह के प्रयोगों से शिक्षा के क्षेत्र में अधिक विविधता और नवीनता देखने को मिल सकती है।

हवामहल: कोरोना समय में बच्चों का झरोखा RSCERT उदयपुर (राजस्थान) एक ऐसा ही नवाचार रहा जिसकी संकल्पना कोविड महामारी के पहले लॉकडाउन के दौरान की गयी थी।

मार्च 2020 तक राजस्थान स्कूल पुस्तकालय संवर्धन परियोजना के अंतर्गत संपादित होने वाले बाल पुस्तकालय से संबन्धित कार्य-योजना एवं टाइम लाइन आदि का निर्धारण हो चुका था। इस परियोजना से जुड़े सभी कुछ नया करने के उत्साह में थे। तभी कोरोना के पहले लॉकडाउन की घोषणा हो गयी। पूरा कालखंड जैसे थम गया। विद्यालय बंद हो गए। सभी इस उम्मीद से थे कि शायद दो-तीन हफ्तों में परिस्थिति सामान्य हो जाएगी और काम वापस से शुरू किए जा सकेंगे। हालांकि कई अनुमान ऐसे भी थे जो यह बता रहे थे कि यह परिस्थिति शायद लंबे समय तक रहेगी। यह एक वैश्विक महामारी रही थी। जिससे समूचा विश्व, सभी विद्यालय, बच्चे और शिक्षक जूझ रहे थे।

अब विद्यालय बंद थे। बच्चे अपने घरों में थे और आपदा जारी थी। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले सभी के लिए यह चुनौती नयी थी कि इस परिस्थिति में सीखने की प्रक्रिया को कैसे नियमित बनाए रखें ? कोरोना को लेकर अपनी चिंताएँ थीं। ‘सामाजिक दूरी’ एक नया कल्चर था। सभी नवाचार को लेकर तमाम कोशिशें कर रहे थे। RSCERT उदयपुर की पहल पर राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली विभिन्न संस्थाएँ एक नयी पहल के लिए तैयार हुईं। RSCERT उदयपुर ने सभी से नई परिस्थिति को देखते हुए सुझाव आमंत्रित किए थे। जिसमें तकनीक आधारित नवाचार पर बात हो रही थी। जो कि समय और परिस्थिति के हिसाब से सबसे मुफ़ीद नवाचार लग रहा था। इस प्रयास में सीएमएफ़-टाटा ट्रस्ट, पराग इनिशिएटिव, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, रूम टू रीड, पीरामल फाउंडेशन, प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन आदि सक्रियता से अपनी-अपनी भूमिकाओं के बारे में सजग रूप से बातचीत कर रहे थे। इस पूरी प्रक्रिया में पराग इनिशिएटिव और सीएमएफ़ ने बाल पुस्तकालय और बाल साहित्य के अनुभवों को लेकर सहयोग करना तय किया। कहानियों, कविताओं, लाइब्रेरी की गतिविधियों और लाइब्रेरी संचालन को लेकर हमारे जो भी अनुभव थे उनको ऑडियो-विजुअल प्रारूप में साझा करने पर अपनी प्रतिबद्धता जतायी। टाटा ट्रस्ट का पराग इनिशिएटिव विगत डेढ़ दशकों से देश के विभिन्न प्रकाशन संस्थानों के साथ बाल साहित्य के विकास हेतु सहयोग करता रहा है। इसलिए इस प्रयास में हिन्दी कंटेन्ट को लेकर एकलव्य और इकतारा जैसे प्रकाशनों ने सहयोग के लिए सहमति दी। कहानियों और कविताओं में कॉमन क्रिएटिव कंटेन्ट के साथ-साथ कुछ कॉपीराइट कंटेन्ट भी शामिल थे। कुछ बाल पत्रिकाओं जैसे चकमक, संदर्भ, स्त्रोत, प्लूटो और साइकिल आदि पत्रिकाओं की सामग्री इस्तेमाल करने की अनुमति भी मिली।पराग ने लाइब्रेरी प्रक्रियाओं और बाल साहित्य को लेकर वीडियो सीरीज हाल ही में विकसित की थी। इन प्रकाशनों के साथ-साथ अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की पत्रिका पाठशाला, रूम टू रीड के प्रकशन की किताबें, स्टोरीविवर और प्रथम बुक्स किताबें तथा गतिविधियाँ,पीरामल फाउंडेशन की ऑडियो स्टोरीज़ के साथ-साथ, भारत ज्ञान विज्ञान समिति और अरविंद गुप्ता टॉयज़ की सामग्री इस्तेमाल की विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से अनुमति अब RSCERT के पास थी। इन सभी सामग्री को एक टेम्पलेट में विभिन्न लिंक के माध्यम से सँजोया जाता रहा। जिसे नाम दिया गया – हवामहल: कोरोना समय में बच्चों का झरोखा। घर में बंद बच्चों के लिए बाहरी दुनिया से जोड़ने का झरोखा। इस तरह इस ई-पत्रिका की संकल्पना हुई। पहला अंक 2 मई 2020 को साझा किया गया। उसके बाद से यह साप्ताहिक ई-पत्रिका RSCERT उदयपुर द्वारा विभिन्न व्हाट्सअप समूहों (विद्यालयों, शिक्षकों एवं संस्थाओं के) के साथ-साथ ‘SMILE’ (Social Media Interface for Learning Engagement) प्लेटफॉर्म द्वारा हर शनिवार को समूचे राजस्थान के बच्चों एवं शिक्षकों के लिए भेजा जाती रही है। हवामहल को साप्ताहिक रूप से भेजे जाने के उद्देश्य स्पष्ट रहे हैं

  • लॉकडाउन समयवधि में बच्चों के समय का रचनात्मक उपयोग करना ताकि सीखना घर पर हो सके।
  • कहानियों, कविताओं, गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के आनंद से सीखने के अवसर देना।
  • शिक्षण में नवाचार के रूप में इस तरह की शिक्षण अधिगम तकनीक का विस्तार करना।

100 अंकों के इस सफरनामे को देखें तो टीम हवामहल ने शिक्षण-अधिगम से जुड़ी 500 से ज्यादा सामग्रियों को इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से सँजोया है। 29 विशेष अंक जारी किए गए हैं। पहला विशेषांक 11 जुलाई 2020 जो कोरोना जागरूकता पर केन्द्रित था। उसके बाद समय-समय पर विशेषांक जारी किए जाते रहे जिनमें बारिश विशेषांक, स्वाधीनता अंक, घर विशेषांक, पर्यावरण अंक, गाँधी पर एकाग्र (3 भाग), प्रेमचंद की कहानियाँ, लोककथा विशेषांक, खेल अंक आदि बहुत प्रशंसित रहे।

हवामहल के साथ कुछ समय तक एक टॉल फ्री नम्बर भी साझा किया जाता रहा है, जिसपर कॉल करके यूजर्स मुफ्त में कहानियों का आनंद ले पाएँ।
हवामहल की सामग्रियों को तैयार करने में राजकीय विदयालयों के शिक्षकों, पुस्तकलायाध्यक्षों के साथ-साथ राजस्थान पुस्तकालय संवर्धन परियोजना से जुड़े राज्य संदर्भ समूह के शिक्षकों का भी समय-समय पर सहयोग मिलता रहा है।

हवामहल के प्रयास को नियमित रूप से बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों का प्रेम और सकारात्मक सहयोग उनके सुझावों के रूप में मिलता रहा है। हवामहल टेम्पलेट के साथ एक फीडबैक फॉर्म (सुझाव पेटिका) का लिंक हर अंक के साथ जाता है। ‘आज का अंक कैसा लगा?’ पर यूजर्स अपनी प्रतिक्रिया भेजते रहे हैं। हवामहल की टीम उन सुझावों पर विचार करते हुए तब्दीलियाँ भी करती आई है। 100 अंकों के इस सफर में समूचे राजस्थान से अभी तक लगभग 2.5 लाख प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई हैं। जो निश्चचित रूप से इस ई-पत्रिका की लोकप्रियता की एक बानगी है।

आज हवामहल की चर्चा शिक्षा के एक नवाचार के माध्यम से हर जगह है। यू-ट्यूब पर ‘हवामहल इस्तेमाल कैसे करें?’ और ‘यह कार्यक्रम क्या है?’ पर कई ट्यूटोरियल वीडियो यूजर्स के द्वारा बनाए गए हैं। विभिन्न जिलों के बच्चे समय-समय पर हवामहल की माध्यम से सीखकर बनाई गयी सामग्री के फोटोग्राफ्स सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। कुछ मीडिया संस्थानों ने इस प्रयास कॉ ‘शिक्षा की संभावनों’ के रूप में भी देखा है।
उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का अंत हो। लेकिन ऐसे प्रयास आगे भी जारी रहने चाहिए।

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