Loading...

मैं योग्यता इसरानी राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय अलियाबाद, निवाई (टोंक) में कार्यरत हूँ। पुस्तकालय से जुड़ा अपना एक अनुभव मैं साझा करना चाहूंगी। यह उन दिनों की बात है जब मैं चिल्ड्रन लाइब्रेरी कोर्स (CLC) के दौरान विद्यालय स्तर पर बाल पुस्तकालय की स्थापना, संचालन और उसका प्रबंधन कर रही थी । विद्यालय में विद्यार्थियों की बहुत कम संख्या होने के कारण मैंने बाल पुस्तकालय के लिए कक्षा 3 से 8 तक के बच्चों को नामांकित किया हुआ था। इसका संगठन मैंने कक्षा 1 व 2 संयुक्त रूप से जिस कमरे में बैठती थी वहीं एक कोर्नर में किया हुआ था। बच्चे मेरे बाल पुस्तकालय में नियमित समय में कक्षा अनुसार आते थे या कोई रिक्त कालांश के दौरान भी आ जाया करते थे।

अपने से बड़ी कक्षा के बच्चों को बाल पुस्तकालय में आते जाते, अपनी रुचि की किताबों को पसंद करते, उन पर वार्तालाप करते, किताबों को पढ़ते व लैंडिंग कार्ड का संधारण करते देख छोटे बच्चे बहुत ही रोमांचित महसूस करते थे। जब मैं बच्चों को किताबों से जुड़ाव के लिए रीड अलाउड, बुक टॉक, साझा पठन या खजाने की खोज आदि गतिविधियां करवाती थी, तो ये बच्चे बहुत ही उत्साहित होकर आनंद लेते थे।

एक दिन मैं कक्षा- कक्ष में मध्याह्न के दौरान अकेली बैठी ‘गांधीजी की आत्मकथा’ पुस्तक पढ़ रही थी, तब कक्षा एक के तीनों बच्चे मेरे पास आए और फुसफुसाने लगे। पुस्तक को मेज पर रखते हुए मैंने उनके भाव को समझा और पूछ लिया “क्या तुम्हें भी किताब पढ़नी है?” इतना पूछते ही छात्रा ज्योति ने अपनी मातृभाषा (राजस्थानी) में जवाब दिया “म्हाने किताब पढ़बो कोन आवे, मैडम जी”। इतना सुनकर मैं कक्षा एक के उन तीनों बच्चों को बाल पुस्तकालय की किताबों के पास ले गई और कहा- “यदि तुम्हें किताब पढ़ना आती होती तो बताओ कौन सी किताब को यहां से सबसे पहले उठाते”। तीनों बच्चे बहुत ही उल्लास महसूस करने लगे और बाल पुस्तकालय की किताबों के करीब जाते ही मानो बच्चों का मन खुले आसमान में हो रही धीरे-धीरे बारिश में नहाने के जैसा हो गया। देखने में लग रहा था कि उनका मन सभी पुस्तकों को देखकर विचलित हो रहा है। एक बार खुशी व धन्यवाद की नजरों से मुझे देखते और दूसरी और किताबों को। किताबें भी तो रंग -बिरंगी, चित्रात्मक, छोटी-बड़ी और कोई ऊपर तो कोई नीचे रस्सी पर टंगी, कोई टेबल पर बैठी तो कोई स्टेण्ड पर खड़ी उनको आकर्षित कर रही थी।

आज तो उन बच्चों को बाल पुस्तकालय की किताबों के सामने मानो दुनिया के किसी भी खिलौने से कोई लगाव न था। तीनों बच्चे एक-दूसरे को किताबें दिखाते, बतलाते और खिलखिलाने लग जाते। आज का यह दृश्य देखकर मैंने मन में ही बाल पुस्तकालय को सरकारी विद्यालयों की प्राथमिक कक्षाओं तक लाने की सोच रखने वालों को बहुत ही धन्यवाद दिया। थोड़ी ही देर में तीनों बच्चे एक चित्रयुक्त किताब मेरे पास लेकर आए और बोले “मैडम, यह किताब हमको सबसे अच्छी लगी”। उनका इतना ही बोलते, मैंने भी कह दिया “हां तो जाओ और पढ़ लो” । बिना कुछ तर्क- वितर्क दिए तीनों बच्चे जमीन पर बैठकर किताब पढ़ने लगे, जब कि मुझे यह पता था कि उनको तो किताब पढ़ना ही नहीं आता। अब जब मैंने पुस्तकालय प्रभारी की भूमिका में निरीक्षण किया तो पाया कि तीनों बच्चों ने किताब को सीधा और सही ढंग से पकड़ा हुआ है। एक बच्चा लिखित पंक्ति के ऊपर उंगली चला रहा था और दूसरा कहानी बोल रहा था तथा तीसरा मजे से सुन रहा था। कुछ और करीब गई तो मैंने पाया कि वह बच्चे जो कहानी पढ़, बोल और सुन कर मजे ले रहे थे, वह कहानी तो उस किताब में थी ही नहीं।

आज मुझे महसूस हुआ कि हर एक बच्चे में अपना अलग कौशल होता है तथा बच्चों की कल्पना शक्ति बहुत ही विस्तृत होती है । हमें बच्चों को छोटा समझकर पुस्तकों से दूर नहीं रखना चाहिए। बल्कि उनको भी पुस्तकों से दोस्ती करवानी चाहिए, जिससे बच्चे शुरुआत से ही अच्छे पाठक और साहित्यकार बन पायें।

योग्यता इसरानी
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय अलियाबाद, निवाई (टोंक)

‘जीवन चक्र’ पर बात करतीं दो चित्र किताबें

जीव जगत हमेशा से लुभावना और रहस्यमयी लगता है। जीवन-सृजन एक जटिल प्रक्रिया भी। बच्चों के लिए इस विषय पर छिटपुट किताबें ही प्रकाशित हैं…

Navnit Nirav Parag Reads 13 August 2021

How to Raise Children as Readers

How to Raise Children as Readers

The Parag Initiative supports stories and books in a range of languages, themes, age groups, and genres with the goal of ensuring that children have…

Mini Shrinivasan Parag Reads 5 August 2021