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मैं विगत 5 साल से पुस्तकालय विज्ञान के विभिन्न पाठ्यक्रमों के संपर्क में हूं । पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक और अधिस्नातक किया। इन पाठ्यक्रमों में पुस्तकालय संचालन के इतिहास, विभिन्न नियम व विभिन्न कार्यों से अवगत कराया। लगभग 3 साल पहले जब मेरी नियुक्ति हुई तो मैंने पाया की पुस्तकालय में पाठक बहुत कम उपयोग हेतु आते हैं। अपने स्तर पर कुछ नवाचार किये जिससे पाठकों की संख्या में कुछ इजाफा भी हुआ।
हाल ही में मैं टाटा ट्रस्ट के सीएलसी कार्यक्रम से जुड़ा यह एक अनोखा कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में मुझे सिखाया गया की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से कैसे पाठकों को पुस्तकालय से जोड़ा जा सकता है । जिसका आज तक मेरे द्वारा किए गए विभिन्न पाठ्यक्रमों में कहीं भी समावेश नहीं था।
इस कार्यक्रम से पूर्व मेरे मन में कुछ पूर्वाग्रह थे जैसे बिना संसाधनों के पुस्तकालय संचालन नहीं किया जा सकता, बच्चे पुस्तकें फाड़ देते हैं, छोटे बच्चे कविता लेखन नहीं कर सकते, छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ना नहीं आता, पुस्तकालय में बच्चों को शांत रहना चाहिए आदि।
इस कार्यक्रम के पश्चात जो मैंने इस कार्यक्रम में सीखा उसे धरातल पर उकेरा तो पाया कक्षा 3 के विद्यार्थियों द्वारा कविता का निर्माण किया गया । कक्षा 1 का विद्यार्थी पुस्तक को पढ़ पा रहा है । इस प्रकार इस कार्यक्रम के माध्यम से मेरे मन के विभिन्न पूर्वाग्रहों को दूर किया गया।
इस कार्यक्रम के माध्यम से जीवंत पुस्तकालय हेतु आवश्यक आयामों (जगह, संग्रह ,लोग ,संवाद, गतिविधि और प्रबंधन ) के बारे में बताया गया । सामान्यतः पुस्तकालय भवन के बाद पहली प्राथमिकता पुस्तकालय साज-सज्जा और संसाधनों की होती है जबकि हमारी प्राथमिकता एक अच्छे पुस्तक संग्रह की होनी चाहिए । उसके बाद पाठकों को पुस्तकालय से जोड़ने की। बिना संसाधनों के भी मजबूत इच्छाशक्ति से एक पुस्तकालय का संचालन भली-भांति किया जा सकता है । इस प्रकार पुस्तकालय के विभिन्न आयामों पर इस कार्यक्रम के माध्यम से विस्तृत चर्चा की गई।
मैं धन्यवाद ज्ञापित करता हूं राजस्थान सरकार व टाटा ट्रस्ट का जिन्होंने इस बहुआयामी कार्यक्रम की राजस्थान में शुरुआत की और मुझे इस कार्यक्रम का एक हिस्सा बनाया।
When ‘Jamlo Walks’ with Children
Chandrika Kumar, …yr old, from a village in Okra, Khunti district of Jharkhand, shared her response after listening to ‘Jamlo Walks’…