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यह कहानी एक ऐसे परिवेश का दृश्य उभारती हुई शुरू होती हैं जिसमें पानी का बेहद संकट है और संकट से उबरने के लिए और उससे पार पाने के लिए कुछ न कुछ प्रयासों पर जोर दिया जा रहा। कुछ बाल्टियों में पानी इकट्ठा कर रहे हैं तो कुछ बर्तनों में, कोई पानी की तलाश में गहराई में खोदनें के लिए औज़ार इकट्ठा कर रहे हैं। रंज एक बेहद जिज्ञासु व बारीकी से जाँच पड़ताल करने वाली खोजी प्रवृति की और अपने आप को किसी जासूस से कम ना समझने वाली लड़की है। एक दिन वो कॉपी पेन कलेकर जल संकट का समाधान खोजने के लिए निकल पड़ती है। वो गाँव के पास, पहाड़ी पर और ऊपर पहाड़ी के तालाबों की जाँच पड़ताल करती हैं। इस पड़ताल के दौरान बेहद मजेदार घटनाएं होती हैं जो इस पुस्तक को बेहद गम्भीर बनाती हैं और मजेदार भी। जैसे – पड़ताल करते हुए रंज कहती हैं तालाब का पानी क्या कहीं भाग गया? क्या किसी ने उसे चुरा लिया? जल संकट जैसी विराट समस्या के समाधान को वह अपनी दादी का चश्मा ढूँढ लेने से जोड़कर देखती है कि कैसे उसने खोजबीन करते हुए दादी का चश्मा ढूंढ लिया था जो कि किताब के उस पेज पर मिला जिसको दादी ने आखिर में पढ़ा था। यहाँ काम को कर लेने और अंजाम तक पहुँचनें का रंज का जो आत्मविश्वास हैं वो बेहद ऊँचा है।

कहानी में एक दूसरा पात्र उभरता हैं जो रंज से कुछ कम नहीं हैं। अपने आपको सेनेटरी इंजिनियर कहने वाली सपना, जो रंज की ख़ासम ख़ास सहेली हैं, इस खोजबीन और समस्या समाधान में उसके साथ कदमताल करती है। दोनों ने अपने गाँव का नक्शा बनाया और इस आधार पर जाँच पड़ताल, खोजबीन करते हुए वे एक ऐसी जगह पहुँचती हैं जहाँ बहुत ही मजेदार घटना होती है और जल संकट का रहस्य सुलझ जाता है। आमतौर पर रहस्य सुलझ जानें पर जासूस में ख़ुशी की लहर दौड़ जाती हैं परन्तु उसके उलट यहाँ रंज गुस्सा करती है। इस गुस्से में बालमन जो उभर कर आता बेहद रोमांचित करता हैं जैसे – कहाँ ले जा रहे हो हमारा पानी? ये जो तुम कर रहे हो बिल्कुल सही नहीं हैं! रंज का ये वाक्य, बेहद गम्भीर है और संसाधनों के असमान बँटवारे के साथ साथ ताकतवर द्वारा शोषण किये जा रहे शोषण पर सवाल खड़े करता हैं। गाँव और शहर के बीच सुविधाओं में भेदभाव और संसाधनों की लूट की ओर यह ध्यान खींचता हैं। कहानी की ये घटना तो बेहद रोचक है कि दोनों लडकियां अचानक से पानी के पम्प से चिपट जाती हैं और पानी को बचाने के प्रयास का जो दृश्य है यह दृश्य मुझे उत्तराखंड के चिपको आन्दोलन और राजस्थान के जोधपुर के खेजडली गाँव की घटना की याद दिलाता हैं। कहानी और भी मजेदार हो सकती थी अगर इसका अंत बेहद गम्भीरता से होता जो कि बहुत ही सतही तौर से किया गया। कहानी में घटनाएं बेहद गम्भीर एवं रोचक तरीके से रखी गई परन्तु कहानी का अंत और भी रोचक हो सकता था जिसकी कमी नजर आई। हालांकि लेखक के लिए कहानी का यह मोड़ मुश्किल भी रहा होगा।

किसी भी बाल कहानी को जीवंत एवं आकर्षक बनानें में चित्रांकन की महत्ती भूमिका होती हैं इस पुस्तक में उपमन्यु नें कहानी के आधार पर चित्रों को इस तरह से पिरोया हैं कि चित्रों के आधार पर शुरूआती पाठक भी इस किताब से जुड़ सकता हैं। जैसे रंज को जासूस के रूप में एक चिन्तक और गम्भीर दर्शाया गया हैं इसी तरह से पानी के पंप से चिपट जाने वाला दृश्य तो बेहद आकर्षक हैं।

(‘लापता पानी का मामला’’ पुस्तक की यह समीक्षा, सेंटर फॉर माइक्रो फाइनेंस’ के ‘राजस्थान स्कूल पुस्तकालय संवर्धन परियोजना’ में ज़ोनल कोऑर्डिनेटर, अब्दुल शरीफ ने लिखी है)

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