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मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है,
हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,
…मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य-पीड़ा है
—- मुक्तिबोध
पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया,यानी पारी, ग्रामीण भारत में अधिकार-च्युत लोगों व समुदायों की सच्ची जीवन-स्थितियों पर आधारित कथा-पुस्तकों का निर्माण कराती है जिसे कराडी टेल्स द्वारा प्रस्तुत किया गया है और इनका अनुवादित प्रकाशन पराग (टाटा ट्रस्ट्स) के समर्थन से एकलव्य ने किया है। ये कुल पाँच किताबें भारतीय जीवन का जीवंत दस्तावेज हैं। सबसे कमजोर लोगों के दु:ख, संघर्ष, जीवट और जीवन में विश्वास की ये सच्ची कहानियाँ, पढ़ने वाले के मर्म को बेधती हैं, बेचैन करती हैं और सोचने पर मजबूर करती हैं—क्या एक बेहतर संसार नहीं बनाया जा सकता?
‘फिर से घर की ओर’ नामक किताब में एक पात्र कहता है, “हमें अपनी कहानी की किताब लिखनी चाहिए। ज़रा सोचो, हमारी लिखी कहानी की किताब कौन पढ़ेगा?” इस किताब की लेखक कहती हैं, “मैंने यह कहानी इसलिए खोजी क्योंकि पारी की शुरुआत करने वाले सम्पादक पी. साईनाथ का मानना है कि ऐसी कहानियाँ कही जानी चाहिए”। और इसलिए कही जानी चाहिए कि हर व्यक्ति का जीवन महत्वपूर्ण है, प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, और प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीड़ा है। इन कहानियों को कहने वाली कथाकारों ने बहुत धीरज, प्रेम और सहानुभूति से इन्हें प्रस्तुत किया है। ये सभी सच्ची घटनाओं और व्यक्तियों की कथाएँ हैं, लेकिन कहीं से रपट या रिपोर्ताज नहीं लगतीं। ये यथार्थ का पुनर्सृजन हैं। ये तथ्यों का सृजनात्मक रूपांतरण हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि कला की जीवन-शक्ति भी यथार्थ ही है। और यह भी कि रोज-ब-रोज की दुनिया किसी भी परी-कथा से ज़्यादा रोमांचक है।
१. सयानी नन्दिनी:
यह उस असाधारण स्त्री कहानी है जो शिवगंगई गाँव में साग-सब्ज़ी-फूलों की खेती करती है। वह एक पूर्णकालिक किसान है। उसकी इच्छा है कि बच्चे अच्छी शिक्षा पाएँ। और वह अकेली स्त्री साहस और दिलेरी के साथ अपना जीवन गढ़ती है और साबित करती है कि किसानी भी बहुत बड़ा काम है। मूल अँग्रेजी से अनूदित इस किताब की भाषा सरल तथा व्यंजक है।
लेखक ने बारीक ब्योरे और अछूते बिम्ब दिए हैं, जैसे ‘लम्बी लम्बी सुस्त परछाइयाँ’ या ‘चाँद पूरा सफ़ेद और गोल था, बिल्कुल इडली की तरह’।
२. फिर से घर की ओर:
यह सिट्टीलिंगी घाटी में बस एक गाँव के जोशीले बच्चों-किशोरों की पराक्रम-गाथा है जो अपने गाँव में अपना स्कूल खुद खोलते हैं और अपने प्रिय लोगों को वापस गाँव बुला लाते हैं। आगे की पढ़ाई के लिए गाँव में स्कूल नहीं था, उन्हें जंगल से होकर लम्बा रास्ता तै करके दूर जाना पड़ता।तब एक सवाल मन में आया, “क्या हो अगर हम अपना स्कूल शुरू करें?”
और स्कूल खुल गया। बाहर वाले गाँव लौट आए। लेखक कहती हैं—कई बार बड़े बदलाव लाने के लिए महज़ छोटा सा ख़्याल ही काफ़ी होता है।
यहाँ तमिल, मलयालम, लम्बाड़ी कई भाषाओं के शब्द और सुगंध हैं। अनुवाद अच्छा है।
३. छपाक्:
यह उन लड़कियों की शौर्य-गाथा है जो शारीरिक कमी या विकलांगता के बावजूद तैराकी में नाम रौशन करती हैं, अनेक पदक जीतती हैं और सिद्ध करती हैं कि संकल्प, अभ्यास और लगन से सब कुछ संभव है। हर स्पर्धा के समय होने वाली आशंका, व्याकुलता और द्वन्द्व को तीक्ष्णता से उकेरा गया है। अन्य कहानियों की भाँति यह भी साहस, प्रतिकूलता, सफलता और आशा की कहानी है।
अनुवाद की भाषा मुहावरेदार और प्रभावशाली है। कथा मार्मिक है और अंत तक पाठक को बाँधे रखती है।
४. असाधारण घर:
यह एक असाधारण कहानी है, उन बच्चों -किशोरों की कहानी जिनके माता-पिता एच आई वी संक्रमण से गुजर चुके हैं, जिनका अपना अब कोई नहीं, जिनका अपना कोई घर या ठिकाना भी नहीं। स्नेहगाँव में रहने, पढ़ने, सीखने वाले ये बेसहारा लोग प्रेम और आशा के बिम्ब हैं। यह बहुत मार्मिक कहानी है। यहाँ एक भिन्न तरह की अस्पृश्यता है, संक्रमण के भय से जनित छूआछूत की भावना।
यह कहानी शिक्षण के बारे में भी सीख है। भावों, संवेगों के ज़रिए खुले प्रांगण और सहजावस्था के माध्यम से व्यक्तित्व का निर्माण।
कहानी कहीं से यांत्रिक नहीं है। निपुण कलाकारी प्रत्यक्ष दिखती है—‘ऑटो के इंजन की घरघराहट में अधीरता थी’। और एक मार्मिक प्रसंग— “उसने मुस्कुराते हुए पूछा, साड़ी है क्या?
‘हाँ, यह मेरी माँ की थीमेरे पास उनका फ़ोटो नहीं है, तो….”
५. बेटिकट मुसाफिर:
यह कहानी अनन्तपुर ज़िले में होने वाले पलायन पर आधारित है। लेखिका कहती हैं, “किसानों के संघर्षों, खेती के संकट और आन्ध्र प्रदेश व देश के अन्य हिस्सों में होने वाले माइग्रेशन की अभूतपूर्व रिपोर्टिंग के लिए पी साईनाथ का आभार”। यह उन गरीब लोगों की कहानी है जिन्हें जीने की ख़ातिर अपना गाँव छोड़ना ही है, “ मैं टिकट नहीं ख़रीद सकता, लेकिन मेरे लिए इस ट्रेन में चढ़ना बहुत ज़रूरी है”|
इस किताब में जीवन और रचना के अनेक सूत्र भरे हैं—-“किसी परिस्थिति को बस इसीलिए क्यों स्वीकार करना कि वह कम ख़राब है?”
“तुमको पता है, कम्बल लोगों को सुकून देते हैं लेकिन गुड़ियाँ लोगों को खुशियाँ दे सकती हैं”।
कहानी, कविता, कला भी लोगों को खुशियाँ दे सकती हैं, देती हैं।सबसे मुश्किल ज़िन्दगी के बारे में होकर भी ये कहानियाँ पाठक को भरोसा, उम्मीद और खुशी देती हैं कि ज़िन्दगी बदल सकती है, बेहतर हो सकती है, कि आदमी नयी जिन्दगी पा सकता है। जैसा कि विशाखा जॉर्ज कहती हैं—“अपनी कहानियों में हास्य तलाश कीजिए और उड़ेलिए, घोर अन्धकार से भरे समय में भी।” पारी की ये किताबें सबसे जर्जर और भंगुर जीवन को अमरता प्रदान करती हैं। हर पत्थर में हीरा है।
पारी सीरीज की दो किताबें- नो नॉनसेंस नंदिनी और कमिंग होम पराग ऑनर लिस्ट 2022 का हिस्सा हैं। पारी सीरीज की पांच किताबें अब हिंदी और कन्नड़ में उपलब्ध हैं।
अरुण कमल आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, अकाव्यात्मक शैली के ख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त इस कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी हैं, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक वाम विचारधारा को फ़ैलाने वाली साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।
There are many kinds of families around us. There are families we are born into, and families we become a part of. We love them, fight with them, and…
When Pictures Speak a Thousand Words
We often say that children’s literature is for everyone- it offers the imagination, the narrative and the richness that can appeal to readers of all…