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एक पहल जो रंग लाई

पराग एलईसी अलुम्नाई राजेन्द्र असाटी के प्रयासों को मिली पहचान

पराग द्वारा संचालित लाइब्रेरी एजुकेटर्स कोर्स के वर्ष 2020 के अलुम्नाई राजेन्द्र असाटी का चयन ‘राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान’ (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन मानित विश्वविद्यालय) द्वारा 29-31 जनवरी के दौरान दिल्ली में आयोजित होने वाले ‘National Conference for Celebrating School Leadership’ में कटनी जिले में ‘स्कूल लाइब्रेरी और पढ़ने की संस्कृति के प्रसार’ हेतु किए गये प्रयासों की केस स्टडी प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।

उल्लेखनीय है कि 2020 में लाइब्रेरी एजुकेटर्स कोर्स करने के बाद से ही डाइट व्याख्याता राजेंद्र असाटी कटनी जिले में डाइट के माध्यम से और साथी शिक्षकों को प्रोत्साहित करते हुए स्कूल लाइब्रेरी को जीवंत बनाने का काम करते रहे हैं। जिला प्रशासन को साथ लेकर असाटी ने कटनी जिले में ‘स्कूल लाइब्रेरी को बढ़ावा देने और बच्चों व शिक्षकों के बीच पढ़ने की संस्कृति के प्रसार’ के लिए सरकारी स्कूल शिक्षा प्रणाली के भीतर ही डाइट, बीआरसी, सीएसी, और सक्रिय लाइब्रेरी शिक्षकों के समन्वयन से जबरदस्त काम किया है। आज कटनी जिले के 51 जन शिक्षा केंद्रों के लगभग 1200 स्कूलों में जीवंत लाइब्रेरी चल रही है। इसके अलावा जिले के कस्तूरबा बालिका आवासीय विद्यालयों में मॉडेल लाइब्रेरी स्थापना और संचालन के काम को भी राजेन्द्र मदद कर रहे हैं। उनके इस प्रयास पर आधारित केस स्टडी का चयन 400 से अधिक प्राप्त प्रविष्ठियों में से हुआ है।

राजेन्द्र असाटी के इस सफर पर विस्तार से पढें।

2020 के एलईसी एलूमनी राजेन्द्र असाटी की पहल

कटनी जिले में डाइट व्याख्याता राजेन्द्र असाटी मानते हैं कि एलईसी ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया है। न सिर्फ पुस्तकालय को लेकर बल्कि बच्चों के बारे में, सामान्यतः इंसानों के बारे में, खुद के बारे में और दुनिया-समाज के बारे में सोचने-समझने और देखने का नया नजरिया मिला है। उनके शब्दों में “कोर्स के दौरान किताब के माध्यम से कहानी की परतों और चित्रों पर बारीक नजर, सत्रों में हमारे पूर्व अनुभवों को लेते हुए हरएक बातों की गहराई, बचपन, पुस्तक-संस्कृति, पढ़ने को लेकर नई दृष्टि और एक सुनियोजित, सरल लेकिन गंभीर संवाद के वातावरण ने वह अनुभव दिया जो पहले कभी न मिला था”।

राजेन्द्र असाटी हिन्दी एलईसी के 2020 बैच के हैं। नौ साल माध्यमिक स्तर की कक्षाओं को पढ़ाया और छह साल बीआरसी की भूमिका भी निभाई। पिछले 12 वर्षों से डाइट में व्याख्याता है और डीएलएड के प्रथम वर्ष के स्टूडेंट्स को बाल्यावस्था एवं बाल विकास, समसामयिक भारतीय समाज में शिक्षा, पाठ्यचर्या में सूचना व सम्प्रेषण और दूसरे वर्ष के स्टूडेंट्स को संज्ञान अधिगम, समाज शिक्षा, शालेय संस्कृति, नेतृत्व व शिक्षक विकास जैसे पेपर पढ़ाते हैं।

एक हलचल जो बदलने चली है जिले की तस्वीर

एलईसी के लिए नामांकित होने पर भी यही लगा कि एक और प्रशिक्षण होगा और एक और सर्टिफिकेट मिल जाएगा। लेकिन चयन की प्रक्रिया बिल्कुल अलग थी। हमारा एक टेलीफोनिक साक्षात्कार हुआ।

मुझे आज भी याद है कि शिवानी जी ने उसमें चर्चा के दौरान कई बातें की थीं जिनसे मेरी रुचि, साहित्य से परिचय, मेरी योजना और यह कोर्स करने की मेरी मंशा को जानने के प्रयास शामिल थे।

उस साक्षात्कार के बाद मुझे लगा था कि कितना महत्वपूर्ण था यह सब जानना ? शिवानी जी का बहुत शांत भाव से मेरी बातों को सुनना भी मुझे एक ठीक श्रोता बनने की प्रेरणा दे गया”। कोर्स के बाद अपने नजरिए में बदलाव को स्वीकारते हुए उनका कहना है “कोर्स करने के पूर्व पुस्तकालय की संकल्पना अत्यंत सीमित अर्थ लिये हुए थी। लगता था कि पुस्तकालय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी अथवा कोई काम न होने पर कोई भी किताब पढ़कर टाइम पास करने की जगह अथवा उस किताब को पढ़कर कोई सीख लेने की जगह है। कोर्स करने के बाद कभी कभी खुद पर हंसी भी आती है कि कई बार चीजों को समझे बिना अथवा सीमित समझ के साथ करने की कोशिश करना मेरे लिये कितना दुष्कर था अब समझ के साथ वही काफी सरल लगता है, मजेदार लगता है, बदलाव लाने जैसा प्रतीत होता है”।

एक हलचल जो बदलने चली है जिले की तस्वीर

फील्ड विजिट के दौरान आपको क्या चुनौतियाँ दिखाई देती रही हैं के जवाब में राजेन्द्र कहते हैं “मुझे लगता था कि किसी भी विषय पर मैं गहराई से जानूँ और इसके लिये किताबें काफी मददगार हैँ, पर किताबें पढ़ने में निरन्तरता कैसे लाऊँ, पढ़ने में मजा कैसे आये?

स्कूल मॉनिटरिंग के दौरान भी यही सवाल था कि आखिर बच्चों को पुस्तकालय में बल पूर्वक क्यों भेजना पड़ता है ? मेरी तरह शिक्षकों को भी पढ़ने में मजा आता क्यों नहीं ? स्कूल में लायब्रेरी होनी तो चाहिये पर होती क्यों नहीं?

सवाल दूसरों पर थे पर खुद की तरफ मुड़ जाते। जब LEC कोर्स की बात चली तो मुझे लगा कि इस कोर्स को करने के बाद मुझे मेरे सवालों के जबाब मिलेंगे, साथ ही मैं भी कुछ ऐसा डिलीवर करूंगा जिससे हम अपनी टीम के साथ पढ़ने की संस्कृति का विकास करेंगे। यह होगा तो खुद की महत्वाकांक्षा तो पूरी होनी ही है। घर के एक कमरे में बिटिया को कई किताबें पढ़ते हुए देखना भी मुझे कई बार आश्चर्यचकित करता कि बिटिया मेरी है पर पढ़ती मुझसे अधिक किताबें है यानी इस परिवेश में कोई तो ऐसी जगह है जिसने उसे पाठक बनाया है। यह देखकर मुझे भी लगता कि यदि उस प्रक्रिया को मैं समझ पाऊं तो हमारे स्कूलों मे पढ़ने वाले बच्चे भी अच्छे पाठक बन सकेंगे”।

पुस्तकालय के बारे में अपनी कल्पना और समझ को बताते हुए राजेन्द्र ने बड़ी साफगोई से कहा कि शुरुआत में इसको लेकर सोच बिल्कुल स्पष्ट नहीं थी। लगता था कि एक कमरे में किताबों को जमाकर रख देना, बैठने की व्यवस्था कर देना, पुस्तक लेने देने की व्यवस्था कर देना ही पुस्तकालय है। LEC कोर्स के दौरान पुस्तकालय बनाने का अभ्यास, पुस्तकालय की चेक लिस्ट सहित विभिन्न श्रेणियों की पुस्तकों को जमाना और बच्चों के साथ उनका सुनियोजित इस्तेमाल इत्यादि सीखा।

कोर्स में संपर्क अवधि के दौरान मिले इनपुटस को याद करते हुए राजेन्द्र ने विस्तार से बताया, “शुरुआत में डा कृष्ण कुमार के लेख पर चर्चा से पुस्तक पढ़ने की जरूरत, समस्या और समाधान को समझने में सहायता मिली। अन्य लेखों से ‘पढ़ना क्या है ?’ ‘विभिन्न परिस्थितियों में पुस्तकालय संचालन’, ‘पुस्तकालय की गतिविधियां’, ‘कहानी और कविता सुनाना’, उस पर चर्चा करना, ‘नाटक’, ‘एकाँकी के माध्यम से कहानी को प्रस्तुत करना’, ‘कहानी और कविता के चित्रों पर चर्चा’ इत्यादि के साथ साथ फील्ड वर्क और असाइनमेंट ने मुद्दों को व्यावहारिक रूप से समझने में मदद की। नीतू जी का सहजता से कहानी सुनाना, नवनीत जी की शांति में छुपी संवेदना से भरी कहानी, अनिल जी की समुद्र में शिकारी वाली हाव भाव सहित सुनाई कहानी में बच्चों के व्यवहार का पुतलों से प्रदर्शन, प्राची जी और सोनिका जी की चित्रों पर चर्चा आज भी जीवंत है। साथियों के साथ बैठकर अपना पुस्तकालय बनाना, किताबें पढ़ना, डायरी लेखन, अपने लेन-देन कार्ड में एंट्री करना, कविता बनाना और लेखकों / साहित्यकारों से मुलाकात ने अंदर प्रेरणा का संचार किया। इसे समेकित रूप से देखता हूँ तो लगता है कि बहुत ही सुनियोजित ढंग से हमें पाठक बनने की प्रक्रिया से जोड़ा गया”।

एक हलचल जो बदलने चली है जिले की तस्वीर

कोर्स पूरा होने तक डिस्टेंस पीरिएड में मेन्टर के साथ अलग अलग आलेखों को लेकर हुई समूह चर्चा, जिसमें पढ़ाई और पढ़ने में फरक, पाठकों और लेखकों की निजी पठन यात्रा, लुई, मिस मूर और बसरा की लाईब्रेरियन आलिया जैसे जुनूनी लोगों की कहानियाँ दिल और दिमाग में जगह बना चुकी थीं।

अब बेचैनी थी कि कोर्स के आखिरी संपर्क सत्रों में अपने लिए जो विजन बनाया है और काम के बारे में जो ठान के लौटे हैं उसकी शुरुआत कहाँ से की जाए। कटनी जिले में लगभग 1300 प्राथमिक शालाएं एवं 500 माध्यमिक शालाएं संचालित हैंl विद्यालयों में शिक्षक अपने तरीकों से पुस्तकालय संचालन कर रहे थे।

कहीं पर यह बंद आलमारियों में तो कहीं पर रस्सियों में और कुछ एक स्कूलों में बुक सेल्फ में भी किताबें करीने से रखी हुई मिलती थीl हम जैसे मॉनिटर कोर्स करने के पहले यदा कदा शिक्षकों से पुस्तकालय संचालन के बारे में पूछ लेते थे ताकि स्कूल को ये लगता रहे कि पुस्तकालय जरूरी हैl हमारी भावना को समझकर वह भी हमें इतना दिखा देते थे जितने में उनका और हमारा काम चल जाताl कहीं पर आश्चर्य भी होता जब हमारे सामने या तो हम ही पुस्तकों का कार्टून खुलवाते अथवा उनकी निरीक्षण टीप में यह लिखकर लौट आते कि “पुस्तकालय संचालन व्यवस्थित करें”l

राजेन्द्र ने बताया कि कोर्स से लौटने के बाद सबसे पहले डाइट में डीएलएड के स्टूडेंट्स से उनकी कक्षाओं में बातचीत शुरू की, कोर्स में जो सीखा- समझा उसे टटोलना शुरू किया। एकलव्य पिटारा और एकतारा से खरीद कर लाई किताबों को उनके साथ साझा किया। कहानियों पर चर्चा की। आलेख पढ़ने को दिए और कक्षाओं के अलावा ऑनलाइन सत्रों में भी उसपर बात की। इससे अपनी समझ पर थोड़ा आत्मविश्वास आया।

राजेन्द्र से जब बात हुई कि जिले की स्कूलों में इसकी शुरुआत कैसे की तो उनका कहना था कि जिले में स्कूल लाइब्रेरियों को कैसे सक्रिय किया जाए इसके लिए माहौल बनाने की जरूरत थी और अब सब चलता है वाला रवैया छोड़ना था, मुझे भी अड़ना पड़ा। मुझे याद है सबसे पहली घटना जो माध्यमिक शाला पुरवार में हुई। मोनिटरींग विजिट के दौरान पुस्तकालय के लिए कक्ष नहीं होने की बात शिक्षक द्वारा बताई गई। घूमकर देखने में एक कक्ष में पुराने फ़रनीचरों का बेतरतीब ढेर देखने को मिला। उनसे कहा कि इस कक्ष को व्यवस्थित किया जा सकता है पर वे तैयार नहीं हुए। अगले दिन मैं डीएलएड के अपने 12 स्टूडेंट्स को लेकर उसी स्कूल गया और उनकी मदद से कमरा साफ किया। कुछ फर्नीचर की मरम्मत करके लाइब्रेरी कक्ष में ही काम में लिया। बाकी को एक कोने में जमा कर रख दिया। जगह बन गई तो किताबों को डिस्प्ले किया, बेंच और डेस्क रखे, दरी बिछाई, साज सजावट की तो कमरा खिल उठा। फिर तो उनके सहित दूसरे शिक्षक भी उसमें रुचि लेने लगे। उस स्कूल में मैं नियमित जाता रहा और बच्चों के साथ किताबे लेकर खुद डेमो करता और शिक्षकों से कहता आप देखें कि बच्चे कैसे शामिल होते हैं। बम्बू कहानी पर रीड अलाउड के दौरान बच्चों की भागीदारी शिक्षकों को हैरान करने वाली थी। उनका भी मानना था कि बच्चे ज्यादा एंगेज हो रहे हैं और रिस्पॉन्स भी दे रहे हैं।

सप्ताह में दो तीन स्कूलों के हिसाब से इस बीच कोई 250 स्कूलों तक मैं पहुंचा और बुक टॉक, रीड अलाउड, खजाने की खोज, रोल प्ले, मुखौटे, कवर पेज या घटनाओं की चित्रकारी जैसी चीजें बच्चों के साथ की और शिक्षकों के साथ बात करके इन गतिविधियों को आजमाने के लिए कहता गया। इसके अलावा डीएलएड के स्टूडेंट्स को किताबों के साथ भेजकर 300 स्कूलों तक लाइब्रेरी गतिविधियों और बाल साहित्य की समझ बनाने का प्रयास किया। 51 जनशिक्षा केंद्रों में से प्रत्येक से दो जनशिक्षकों को लेकर व्हाट्स ग्रुप बनाया और उसमें सामग्री भेजना शुरू किया। पूरे जिले का व्हाट्स ग्रुप भी बनाया। ये लाइब्रेरी ग्रुप- 1, लाइब्रेरी ग्रुप- 2, 3 ,4, और 5 के नाम से हैं। हर ग्रुप में 256 सदस्य हैं क्योंकि व्हाट्स ग्रुप की सदस्य संख्या की यही सीमा है। स्कूल विजिट में जहां भी कुछ अच्छा होता हुआ दिखता तो उसका विडिओ बनाकर और उसके बारे में एक छोटा राइट- अप लिखकर सभी ग्रुप में शेयर कर देता। इससे माहौल बनाने में बहुत मदद मिली। इन्हीं विजिट के दौरान मैंने पाया कि 18 से 20 ऐसी स्कूल थीं जिनमें शिक्षक पहल लेकर लाइब्रेरी का काम कर रहे थे। उन्होंने किताबों को वर्गीकरण करके व्यवस्थित डिस्प्ले किया था, लेन- देन कार्ड बनाए थे, बच्चे किताबों को घर भी ले जा रहे थे, उनके साथ बुक टॉक और रीड अलाउड की गतिविधियां नियमित हो रहीं थीं। किरदारों पर मुखौटे बनवाए गए थे और कहानी पर रोल प्ले भी कराया जा रहा था। इसके अलावा ये शिक्षक फोन कर के बात भी करते थे कि अमुक गतिविधि कैसे की जाए। मुझे लगा ये शिक्षक हमारे चेंज एजेंट हो सकते हैं। उनसे बात चीत की और सहमति लेकर उनकी तैयारी शुरू कर दी ताकि वे डिस्ट्रिक्ट के लिए एक रिसोर्स ग्रुप की तरह काम कर सकें।

राजेन्द्र के स्कूल विजिट से और पुस्तकालयों पर लगातार बात करने से शिक्षकों में लाइब्रेरी को लेकर समझ और उत्साह बना है। वे सब अपने अपने लाइब्रेरी के काम को ग्रुप में बताना चाहते हैं और मोनिटरींग विजिट में भी। केवलारी मिडल स्कूल की सायरा बानू ने बताया कि डेढ़ साल से हमारी लाइब्रेरी की रंगत ही बदल गई है। पहले कक्षा 1 और 2 के बच्चों के लिए हम लाइब्रेरी जरूरी नहीं समझते थे लेकिन अब समझ में आया कि किताबों से जुड़ने और पढ़ना सीखने के लिए इन बच्चों को लाइब्रेरी में लाना बहुत जरूरी है। वे चित्रों वाली कहानियां खुद बनाकर बोलते हैं।

प्राथमिक स्कूल सेमरा की सपना मिश्रा ने छोटा सा ही सही पर लाइब्रेरी कक्ष बहुत जीवंत बनाया है। उसमें अपनी कहानी बनाने का कोना, चित्र बनाने का कोना, कहानियों के बारे में लिखकर डिस्प्ले लगाने का कोना, और मुखौटों का कोना है। किताबें व्यवस्थित रखी हैं। बच्चे कई कहानियों पर रोल प्ले कर चुके हैं उनके पास बहुत से मुखौटे तैयार हो गए हैं। बाई लिंगुअल किताब का अच्छा प्रयोग कर रही हैं सपना। उन्होंने बताया कि राजेन्द्र जी ने अंग्रेजी से परिचित करने के लिए इसके इस्तेमाल का अच्छा तरीका सुझाया है। बच्चे मिक्स करके हिन्दी और अंग्रेजी के संवाद बोलते हैं। हमने भी उनकी स्कूल में देखा, शेर और चूहे वाली कहानी को बच्चे मुखौटे लगाकर हिन्दी और अंगरेजी मिक्स करके संवाद बोल रहे थे।

प्राथमिक स्कूल खटकरी के मनीष सोनी बताते हैं कि स्कूल विजिट के दौरान राजेन्द्र जी ने महागिरी किताब पर बच्चों के साथ जिस तरह बातचीत की उससे मेरा पूरा नजरिया ही बदल गया। मैंने कभी बच्चों की किसी कहानी को इतनी गहराई और गंभीरता से नहीं देखा था। बच्चों को कहानी तो मैं भी सुनाता था और मुझे लगता था अच्छी तरह सुना रहा हुँ, लेकिन उसमें बच्चों की कोई भागीदारी नहीं रहती थी। अब मुझे समझ में आया कि बच्चों को शामिल करना जरूरी पहलू है।

राजेन्द्र बताते हैं कि राज्य शिक्षा केंद्र का 2021 का एक सर्कुलर था पुस्तकालय संचालन के बारे में। उसको आधार बनाते हुए मैंने पूरे जिले के 51 जन शिक्षा केंद्रों से शिक्षकों को बुलाकर लाइब्रेरी के संचालन, प्रबंधन और पुस्तकों के इस्तेमाल पर बात की। आज अलग व्हाट्स एप ग्रुप के माध्यम से लगभग 1200 लाइब्रेरी शिक्षक जुड़े हुए हैं और निरंतर सामग्री व विचारों का आदान- प्रदान होता है। इसके अलावा 51 जनशिक्षा केंद्रों से प्रत्येक से दो-तीन शिक्षकों के हिसाब से कुल 151 शिक्षकों के समूह के लिए एलईसी फ़ैकल्टी नवनीत, नीतू, अनिल और अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के गुरबचन जी के ऑनलाइन सत्र आयोजित किये। इसमें कहानी पर गहराई से बात, कविताओं पर काम, बुक टॉक और रीड अलाउड की गहन तैयारी व समझ और बाल मनोविज्ञान जैसे विषय लिए गए।

एक हलचल जो बदलने चली है जिले की तस्वीर

काम को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से जिले में अपनी स्कूल के स्तर पर पहल करने वाले 20 चिन्हित लोगों को लेकर डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स ग्रुप (डीआरजी) बनाया और डाइट से उनके लिए औपचारिक पत्र भी जारी किया। डाइट पर ही उनका विधिवत प्रशिक्षण किया।

एलईसी में जो भी सीखा- समझा सबकुछ इन साथियों तक पहुँचाने की कोशिश की। मिलकर आलेख पढे, पराग के सारे विडिओ देखे और समूह में तैयारी करके गतिविधियां की। 4 लोगों के ड्रॉप आउट के बाद आज 16 लोगों का यह एक मजबूत समूह पूरे जिले के लाइब्रेरी शिक्षको के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। अब इसी रिसोर्स ग्रुप की मदद से हर ब्लॉक के जन शिक्षा केंद्रों से दो दो शिक्षकों को डाइट की तरफ से पहली बार लाइब्रेरी संचालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स ग्रुप (डीआरजी) के उनके साथियों का कहना है कि एलईसी का कोर्स करके लौटने के बाद से ही राजेन्द्र जी लाइब्रेरी के काम को आगे बढ़ाने में लगे हैं।

डीआरजी की मास्टर ट्रेनर शालिनी तिवारी नी बताया कि राजेन्द्र जी लगातार नई नई किताबें पढ़ते हैं और हमारे समूह में उसपर चर्चा होती है। इस बहाने हम भी नई किताबों से परिचित हो रहे हैं, किताबों के प्रति लगाव बढ़ा है और ट्रेनिंग में भी इससे काफी मदद मिल रही है। राजेन्द्र जी लाइब्रेरी को लेकर एक नई सोच- समझ के साथ काम कर रहे हैं। हम सबको भी उनसे लाइब्रेरी के बारे में नई समझ मिली है और खुद पढ़ने की प्रेरणा पैदा हुई है।

राजेन्द्र ने डाइट की ओर से स्कूल मोनिटरींग के लिए एक 15 बिंदुओं की चेकलिस्ट तैयार की है उसमें 4 बिन्दु लाइब्रेरी संचालन से संबंधित हैं। इससे अब लाइब्रेरी और उसकी सक्रियता को लेकर एक सजगता शिक्षकों में और सिस्टम में दोनों जगह दिखाई देती है।

राजेन्द्र ने पालकों का भी व्हाट्स एप समूह बनाया है और उसमें जिले में शिक्षण- प्रशिक्षण और लाइब्रेरी गतिविधियों संबंधी विडिओ, फ़ोटो, सवाल, विचार एवं अन्य सामग्री शेयर की जाती है ताकि पालकों को भी इसकी जानकारी मिले और उनके सुझाव व सवाल भी सामने आ सकें।

डाइट प्रिंसिपल दुबे का कहना है कि अकेले राजेन्द्र जी ही सब कर रहे हैं। सिर्फ दो ही व्याख्याता हैं। डी एल एड के कक्षाएं भी करनी होती हैं और स्कूल मोनिटोरींग भी करते हैं। समय समय पर ट्रेनिंग में भी लगे रहते हैं। लाइब्रेरी पर ट्रेनिंग की योजना और मॉडयूल भी राजेन्द्र ने ही बनाया है। डाइट का नाम हो रहा है कि अच्छा काम कर रहे हैं। राजेन्द्र ने बच्चों की कहानियों की किताबें हमारे डी एल एड की स्टूडेंट्स के लिए भी जुटाईं हैं। वो लेकर स्कूल जाते हैं और बच्चों के साथ काम करते हैं।

2020 में एल ई सी कोर्स करने के दौरान से ही राजेन्द्र फील्ड में लाईब्रेरी की तस्वीर बदलने के काम में लग गए थे। इन ढाई सालों में अलग अलग तरीकों को आजमाते और पहल करते हुए उन्होंने बच्चों के लिए लाइब्रेरी को चर्चा में और प्राथमिकता में ला दिया है। खुद पढ़ रहे हैं, विजिट में प्राथमिक स्कूल के बच्चों और डाइट में डीएलएड के स्टूडेंट्स के साथ काम कर रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स ग्रुप को लगातार इनपुटस और गाइडेंस दे रहे हैं। जिले भर के तमाम व्हाट्स ग्रुप में चिल्ड्रेन्स लाइब्रेरी की गतिविधियों को लेकर हलचल है। अब जिला प्रशासन भी लाइब्रेरी की तमाम पहलों, बच्चों की भागीदारी व कक्षा में शिक्षकों का उत्साह देखकर इसे प्राथमिकता से ले रहा है। लाइब्रेरी की इन चर्चाओं के बीच उत्साहित कलेक्टर, डाइट के सहयोग से जिले में कुछ मॉडेल लाइब्रेरी बनाने, किताबों के खरीदी के लिए अलग से धनराशि उपलब्ध कराने, पाइलेट स्तर पर कुछ कस्तूरबा गांधी कन्या छात्रावसों में सर्व सुविधायुक्त पुस्तकालय की स्थापना और सार्वजनिक पुस्तकालयों को जन सहयोग से पुनर्व्यवस्थित करने जैसी पहल ले रहे है। इसमें डाइट व्याख्याता और लाइब्रेरी एजुकेटर्स कोर्स (एलईसी) में प्रशिक्षित राजेन्द्र असाटी को एक प्रमुख स्रोत के रूप में देख रहे हैं।

अनिल सिंह, पराग, एलईसी फ़ैकल्टी

A first-of-many-kind

The first teacher in his zone to have done the Library Educator’s Course, to have set up a library in his school, to have initiated Bal Cabinet in…

Nidhi Qazi Library Educator's Course 12th February 2024 English

विश्व हिंदी दिवस पर पढ़ें १० बेहतरीन किताबें!

पराग ऑनर लिस्ट प्रतिवर्ष बच्चों और किशोर पाठकों के लिए हिंदी की बेहतरीन किताबों की चयनित सूची प्रस्तुत करती है। बहुस्तरीय स्क्रीनें और समीक्षाओं के बाद, बाल साहित्य…

Tuhina Sharma Parag Reads 10th January 2024 English