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कुछ किताबें ऐसी होती है, जिसको देखने के बाद आप बिना पढ़े नहीं रह सकतें। ऐसी ही एक रमणीय कहानी है “लापता सुंदरी”. जिसको लिखा और चित्रों से सजाया है प्रिय कुरियन ने और हिंदी में अनुवाद किया है प्रयाग शुक्ल ने। इस किताब को पहली बार मैंने पराग ऑनर लिस्ट 2023 की सूचि में देखा। फिर तो इसके कवर पेज ने मुझे इतना आकर्षित किया कि पढ़े बिना रहना संभव ही नहीं था। चूँकि प्रथम बुक्स ने इसे प्रकाशित किया है इसलिए आसानी से ये किताब मुझे सॉफ्ट कॉपी में स्टोरी वीवर पर पढ़ने के लिए मिल गई। बाद में मैंने फिर इसकी एक कॉपी भी मंगवाई। मैंने इस किताब को कई बार पढ़ा, क्योंकि कहानी जितनी सुन्दर है उतना ही उसके चित्र, जो आपको बार बार किताब पलटने के लिए प्रेरित करते हैं।

तेसम्मा की प्रिय भैंस सुंदरी लापता हो गई है। किसी को पता नहीं कि वो कहां गई, उसके साथ क्या हुआ? तेसम्मा एक स्नेही और मुखर महिला है जो सुंदरी के गायब होने पर परेशान हो जाती है। वह शिकायत दर्ज कराने के लिए एरुमनूर पुलिस स्टेशन जाती है। जब इंस्पेक्टर गोपी और उसके साथी सुंदरी की तस्वीर देखते हैं, तो वे ज़ोर से हँस पड़ते हैं। “भाई भैंस का नाम सुंदरी कौन रखता है!” वे तेसम्मा का मजाक बनाते हैं. लेकिन कॉन्स्टेबल जिंसी इसका पता लगाने के लिए दृढ़ है और वह पूरे गांव में जाती है, लोगों से पूछताछ करती है और सुराग ढूंढने की कोशिश करती है।

सुंदरी गानों की बहुत शौक़ीन है। दिन में अलग-अलग समय के लिए उसे अलग-अलग तरह के संगीत पसंद हैं। जब सुबह सुंदरी दुही जा रही होती है, तो वह पश्चिमी शास्त्रीय संगीत पसंद करती है। जब वह बाहर खुले में चर रही होती है तो उसे बॉलीवुड के गाने सुनना पसंद हैं। जब वह तालाब में नहाती है तब, वह रोमांटिक मलयालम गाने सुनती है। और रात में सोने से पहले, उसे शांत कोमल वाद्य धुनों को सुनना पसंद है।

कहानी सरल है फिर भी इतनी मनोरंजक है कि आपका मन किताब को बार बार देखने का करता है। चारों ओर हो रही छोटी-छोटी चीजों और स्थानीय बारीकियों को सुन्दर तरीके से उभारा गया है। प्रिया कुरियन के अद्वितीय चित्रण में हास्यवृत्ति और कल्पना भरपूर है जो कहानी को और रोचक बनाते हैं और चित्रों से बार बार गुजरने के लिए मजबूर करते है।. चित्रों में एक खुलापन और सुकून है। देख कर लगता है सब कितने आराम में है, किसी को कोई जल्दी नहीं। बैकग्राउंड का हरा रंग आँखों को ठंडक देता है।

जिस तरह से प्रिया कुरियन ने अलग-अलग वातावरण और दिन के अलग-अलग समय को दिखाया है वो लाजवाब है। खास तौर पर वह चित्र जब तेसम्मा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा रही होती है, वह चित्र इतने विचारोत्तेजक हैं कि पृष्ठ किसी फिल्म के सेट के दृश्यों की तरह दिखते हैं। आप देखेंगे कि अधिकतर चित्रों में सुंदरी के साथ एक बगुला दिखाई देता है, जिसका जिक्र कहानी में कहीं नहीं है, पर उसकी मौजूदगी चित्रों में है। और उस बगुले के चेहरे की मुद्रा भी कहानी के हिसाब से बदलती भी रहती है और जब सुंदरी गायब हो जाती है, तब जिंसी जहाँ जहाँ सुंदरी को ढूंढती है वो साथ में होता है। ऐसा लगता है मानों वो जिंसी की मदद कर रहा हो सुंदरी को ढूंढ़ने में। ये कमाल प्रिया कुरियन के चित्रों में दिखता है। जहाँ आप सिर्फ कहानी नहीं चित्र भी पढ़ रहे होते है। जब कहानी के लेखक और चित्रांकनकर्ता एक ही हो, तो टेक्स्ट के साथ साथ चित्रों में भी कहानी चलती है, जो कथानक से जुड़ी रहती है और कहानी में कुछ नया जोड़ रही होती है।

प्रिय कुरियन मेरी पसंदीदा इलस्ट्रेटर हैं। उनके द्वारा बनाए गए चित्र हमेशा सजीव लगते है, जो पात्रों में जान डाल देते है। कई बार ऐसा लगता है कि वह यह सुनिश्चित करती हैं कि उनकी कहानियाँ सटीक और तथ्यात्मक होते हुए भी बच्चों को विचारोत्तेजक और रोचक कथानक प्रदान कर सकें।

इस कहानी की एक खास बात और है कि यह कहानी बहुत ही सहजता से रूढ़िवादिता को चुनौती देती है, जो सुंदरता की तुलना गोरी त्वचा से करतें है। क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि सांवली त्वचा को लेकर मानवीय पूर्वाग्रह इतने गहरे हैं कि वे जानवरों को भी नहीं बख्शते? यह किताब बिना किसी को चोट पहुंचाते हुए एक मज़बूत बात को बड़ी सरलता से रखती है।

किताब के आखरी पन्ने पर कुछ बातें भैंस के बारे में भी लिखीं गई हैं, जो कि मेरे लिए तो काफी नई थीं। – जैसे कि “मंद संगीत सुनना अधिक पसंद करती हैं, इससे उनका तनाव कम होता है और सुकून भी मिलता है”, “भैंसे बुद्धिमान होती हैं”. बचपन से एक कहावत सुनती आ रही हूँ कि – “भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस खड़ी पगुराय”, यह कहानी इस कहावत पर भी सवाल उठाती है। इससे यही भी पता चलता है की लेखिका ने इस कहानी को लिखने से पहले भैंस पर काफी शोध किया है, जिस वजह से यह कहनी और खास बन जाती है।

यह जानने के लिए कहानी पढ़ें, कि कैसे जिंसी अपहरणकर्ता को पकड़ती है और कैसे टेसम्मा को सुंदरी वापस मिलती है।

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