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बच्चों की किताबें अभी भी पढ़ता रहा,कुछ पत्रिकाएँ भी,और इनके लिए कुछ कुछ लिखता भी रहा। लेकिन कभी यह नहीं सोचा कि बाल-साहित्य के मूल्याँकन के लिए,श्रेष्ठ और कमतर के फर्क को आँकने और इसके लिए कोई मानदंड तय करने की भी जरूरत है या हो सकती है जैसा कि शेष साहित्य और कलाओं के लिए आरम्भ से ही होता आया है।

सवाल यह भी है कि क्या बाल साहित्य के लिए अलग से कोई मानदंड, प्रतिमान या आलोचना पद्धति जरूरी है, या सम्भव है। सवाल यह भी है कि क्या पहले, यानी मान लिया जाय सौ या दो सौ साल पहले, अलग से कोई बाल-साहित्य जैसी श्रेणी थी? मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानता। इसलिए विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कह सकता। लेकिन इतना जरूर लगता है कि पंचतंत्र, बेताल पचीसी, गुलिवर्स ट्रैवेल्स या एलिस इन वंडरलैंड सबके लिए हैं। हाँलाकि सबके लिए अर्थ, ग्रहण विधि और शक्ति अलग अलग होंगी। अर्थों के अनेक स्तर होंगे जो सयानों और बच्चों-किशोरों को एक से उपलब्ध नहीं हो सकते। महाकाव्य जैसे रामायण और महाभारत या इलियड व ओडिसी तथा मिथक-पुराण और लोककथाओं का विराट लोक एक साथ सबके लिए खुला और सहज उपलब्ध रहा जो मुख्यत: मौखिक परम्परा से प्रसारित होता रहा।

लेकिन साक्षरता और औपचारिक शिक्षा के प्रसार के कारण, अन्य कारण भी रहे होंगे, संभवत: उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से बच्चों के लिए अलग प्रकार के साहित्य और खास कर चित्र सज्जित साहित्य का लेखन, प्रकाशन और प्रसार बड़े स्तर पर होने लगा।

आज दुनिया भर में बाल-साहित्य व किशोर साहित्य का विपुल सृजन होने से और सुंदरतम छपाई की सुविधा बढ़ने से यह एक स्वतंत्र, स्वायत्त श्रेणी के तौर पर स्थापित है। भारत में भी सभी भाषाओं में इसे देखा जा सकता है, हाँलाकि अँग्रेजी इसमें आगे है।

जब रचना बहुत होगी तब अच्छे, कम अच्छे, न अच्छे के भेद को पहचानने और विवेक को अनुशासित करने के लिए मानदंड भी जरूरी होंगे।

हाल में इस अभाव की ओर विशेष ध्यान गया है – ऐसी संस्कारित ,सर्वांगीण,मूल्यवान पुस्तकों की सूची का अभाव जिसके आधार पर पुस्तकालय,शिक्षकगण,माता-पिता या अभिभावक बच्चों के लिए उचित किताबें चुन सकें।इस कमी को पूरा करने के लिए पराग, जो टाटा ट्रस्ट्स की एक पहल है, श्रेष्ठ बाल साहित्य को सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का काम कर रहा है। पराग नयी पुस्तकों की प्रस्तुति में सहयोग करते हुए लेखकों,चित्रलेखाकारों,शिक्षकगण और पुस्तकालयकर्मियों को प्रशिक्षण देता है।पराग ने ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों के साथ मिलकर अनेक पुस्तकालयों की स्थापना भी की है।

पराग ऑनर लिस्ट 2020 टाटा ट्रस्ट की पराग पहल द्वारा प्रस्तुत बच्चों और नववयस्कों (किशोरों) के लिए हिन्दी और अँग्रेजी में तैयार पुस्तकों की सूची है। इस सूची का लक्ष्य बाल साहित्य की संस्कारित सूची सभी पुस्तकालयों,अध्यापकों,अभिभावकों और बच्चों को उपलब्ध कराना है ताकि वे आसानी से उन्हें खोज और पढ़ सकें।

प्रति वर्ष प्रकाश्य यह सूची वर्ष की उल्लेखनीय पुस्तकों को संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत करती है।इसे बाल साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय विशेषज्ञों द्वारा सावधान चयन एवं बहुस्तरीय समीक्षाओं के उपरांत तैयार किया जाता है।

पराग ऑनर लिस्ट केवल व्यक्तिगत रुचियों से परिचालित न हो, बल्कि हर निर्णय के पीछे एक सुसंगत, वस्तुनिष्ठ कारण हो–इस विचार से समझा गया कि सभी कारणों का अध्ययन करके एक मानदंड के निर्माण की कोशिश की जाय।

पराग ऑनर लिस्ट के लिए आयोजित बैठकों में और प्रस्तुत पुस्तकों पर विचार करते हुए मुझे अनेक मूल्यवान अनुभव हुए। इसके पहले ऐसे किसी विचार-विमर्श में भाग लेने का अवसर नहीं हुआ था।

इस प्रकार जो बातें उभर कर आयीं उनमें एक यह भी है कि बच्चों को छोटा या कमतर समझ कर पीठ थपथपाने के अंदाज में न लिखा जाए। और कोई भी रचना निराशा या हताशा पर समाप्त न हो। कौतूहल का भाव और शब्दों-ध्वनियों के खेल और भाषा की चमक–ये सब हों। प्रेम,सहानुभूति,मनुष्य की समानता और गरिमा का भाव रचना को परिचालित करे। जो किसी भी मायने में हमसे भिन्न है उसके प्रति गहरा प्रेम हम अनुभव करें। और हमारी कल्पना खुल कर उड़ान भरे। साथ ही चित्र और छपाई,प्रस्तुति सब मनोहर लुभाने वाले हों।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ बिन्दु उभरे जिनको आधार बनाकर किसी भी पुस्तक का मूल्याँकन एवं अंक-निर्धारण किया जा सकता है । इस तरह एक वस्तुनिष्ठ मूल्य निर्धारण संभव हो सकता है। हाँलाकि साहित्य या कला में कोई भी मूल्याँकन पूरी तरह रुचि-निरपेक्ष नहीं हो सकता। फिर भी। इसके साथ ही अलग अलग वय-र्गों के लिए भी कुछ संशोधन या समावेश करने पड़ सकते हैं फिर भी कुछ बिन्दु सूत्रबद्ध किए गये जो इस प्रकार हैं:

  1. विषय वस्तु: जाहिर है न तो विषय का निर्धारण संभव है न ही कोई सीमा। फिर भी ऐसा कोई विषय न हो जो घृणा,विद्वेष,अंधविश्वास या दकियानूसी विचारों को फैलाये।
  2. कथानक:विशेषकर कथा में कथानक या प्लॉट पर ध्यान जरूरी है जो दिलचस्प तो हो पर ज्यादा जटिल न हो। रोज-ब-रोज के जीवन के विषय हों तो आत्मीयता अधिक हो सकती है। वैसे यह कोई जरूरी नहीं है।
  3. भाषा: सरल,सुगम तो हो पर जो पाठक में स्वप्न, आश्चर्य, और कल्पना को जाग्रत करे–शब्द क्रीड़ा,भाषा के चमत्कार,लय के जादू के जरिए।
  4. चित्र व सज्जा: पहले की किताबों में इन पर कम ध्यान था। लेकिन आज ये लगभग उतना ही महत्व रखते हैं जितना पाठ या टेक्स्ट। बच्चों को सबसे पहले ये ही आमंत्रित करते हैं और पाठ को खोलते हैं। एक सुंदर किताब किसी भी उपहार से कम नहीं।
  5. मूल्य या आदर्श:हर कृति जीवन और मनुष्य के बारे में कुछ कहती है। देखना है कि वह क्या कहती है। क्या वह प्रेम,सहानुभूति,अपनापा,बराबरी,खुलेपन,सहिष्णुता और नि:स्वार्थ आकांक्षा को पोषित करती है?
  6. सर्वांगीण समीक्षा: कुल मिलाकर, सभी पैमानों को ध्यान में रखते हुए यह किताब कैसी लग रही है। क्या यह हर तरह से,हर पैमाने पर सफल है या कोई पक्ष हीन भी है या यह सही जीवन मूल्यों की विरोधी है। सब मिलाकर एक समीक्षा।
  7. श्रेणी या अंक: हाँलाकि साहित्य में यह पद्धति प्रशंसनीय नहीं है,लेकिन बाल साहित्य का सोपान तय करते हुए एवं चुनाव करते हुए
  8. ऐसा अंक-निर्धारण करना पड़ सकता है ताकि कोई चूक न हो। यह सांख्यिक प्रयत्न मूल्याँकन को वस्तुनिष्ठ बनाने में सहायक होगा।
  9. अनुशंसा: कुल प्रभाव को देखते हुए ,संतोषप्रद होने पर उपसंहारात्मक टिप्पणी

कविता,कथेतर विधाओं,ज्ञान विज्ञान के विषयों की पुस्तकों पर कुछ भिन्न प्रकार से भी विचार करना पड़ सकता है। कविता के लिए लय,तुक,संगीत;कथेतर विधाओं के लिए गद्य की शक्ति और कल्पना-शक्ति; ज्ञान विज्ञान के लिए तथ्यपरकता, संप्रेषण, प्रस्तुति आदि अलग से भी विचारणीय होंगे। फैंटेसी वाली रचनाओं के लिए भी कुछ भिन्न तरह से संवेदित होना होगा।

इस प्रकार बाल साहित्य के मूल्याँकन के लिए जो मानदंड तैयार किए गये उनकी उपयोगिता केवल समीक्षकों के लिए नहीं है।इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोग इसका व्यवहार कर सकते हैं । इससे सही किताबों को चुनने में मदद मिलेगी। शिक्षक कक्षा में पढ़ाते समय स्कूली रचना की व्याख्या में भी इनका उपयोग कर सकती हैं। पुस्तकालयों से संबंधित लोग भी किताबों को चुनते वक्त इन मूल्याँकन बिन्दुओं को ध्यान में रखें तो सहायता मिल सकती है। बाल साहित्य के प्रकाशक भी ,जिनकी ज़िम्मेदारी कम नहीं कही जा सकती, इन मानदंडों से लाभान्वित होंगे और एक आंतरिक अंकुश प्रकाशन में अराजकता एवं व्यवसायीकरण को भी नियंत्रित करेगा। इस उद्यम का मूल उद्देश्य भी यही है कि हमारे बच्चों को सर्वोत्तम मानसिक खुराक और पोषण मिले।

बाल साहित्य को इस प्रकार के प्रोत्साहन और संवर्द्धन की ज़रूरत है ताकि नयी किताबों के लिए आर्थिक समर्थन,सर्जकों को समुचित मान्यता और पुस्तकालयों-अध्यापकों को मार्गदर्शन मिल सके।साथ ही,ऐसी पुस्तकों के वितरण और उन तक पहुँचाने में मदद मिल सके जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है।इस तरह हम सुपठित,ज्ञानवान नागरिकों से संपन्न भविष्य की ओर अग्रसर होंगे।

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