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मेरी नजर में विद्यालय के भीतर एक खूबसूरत गार्डन और एक जीवंत पुस्तकालय होना निहायत जरूरी है। देश के सरकारी स्कूलों में अक्सर इन दोनों बातों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। नया नवेला शिक्षक बन कर जब प्रतापगढ़ जिले की मनोहरगढ़ स्कूल गया तो वहां पर न तो गार्डन था और न ही किसी प्रकार का पुस्तकालय। पुस्तकालय के नाम पर एक अलमारी मुझे दिखी जो हमेशा बंद रहती थी। विद्यार्थियों के सहयोग से कुछ ही समय में गार्डन तो बना दिया, मगर पुस्तकालय की कमी लगातार खलती रही। जिन कालांश में अध्यापक कमरे में नहीं होते उस समय बच्चे अक्सर परिसर में घूम कर वक्त बिताने में लगे रहते। जब उनको जबरदस्ती कमरों के भीतर धकेलता तो बच्चे कहते कि सर खाली बैठे बैठे हम क्या करें? कई बच्चे किताबों की नई खेप की मांग भी करते।

संयोग से 2 अक्टूबर 2019 को गांधी जयंती के रोज घर से दो बोरे भरकर किताबें प्रदर्शनी के लिए स्कूल ले आया। गांधी जयंती पर कक्षा 11 के कमरे में एक प्रदर्शनी लगाई। इस काम में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के जफर भाई का बहुत सहयोग रहा। प्रदर्शनी के बाद जब किताबें समेटने लगा तो बच्चें तरसती निगाहों से किताबों को देख रहे थे। दिल में ख्याल आया कि क्यों न किताबें बच्चों को ही समर्पित कर दे। फिर क्या था, कबाड़ में पड़े एक बक्से को उठा लाया और बच्चों की मदद से किताबें बक्से में रख दी और इस तरह से मनोहरगढ़ विद्यालय की कक्षा 11 के कमरे के भीतर ‘राही मासूम रज़ा पुस्तकालय’ का उद्घाटन हुआ। इस जुगाड़ी पुस्तकालय में खाली समय में कक्षा 11 के बच्चों को साथ लेकर मैं पत्र पत्रिकाएं और किताबें पढ़ता रहता। मेरी देखा देखी दूसरे बच्चे भी किताबों को पलटने लगे। अभी यह प्रयोग केवल कक्षा 11 के भीतर ही चल रहा था, बाकी की कक्षाएं इसका लाभ नहीं ले पा रही थी।

संयोग से आरएससीईआरटी उदयपुर व टाटा ट्रस्ट- सेंटर फॉर माइक्रो फाइनेंस की ओर से जिला स्तर पर मॉडल पुस्तकालय की जो मुहिम चलाई जा रही है, उसके उदयपुर संभाग के प्रभारी दिलीप जी से संपर्क हुआ और यह संपर्क आखिरकार मनोहरगढ़ स्कूल के भीतर जिला स्तरीय मॉडल पुस्तकालय के रूप में परिणित हुआ। इस तरह मनोहरगढ़ के विद्यार्थियों के लिए एक समृद्ध पुस्तकालय का ख्वाब पूरा हुआ।

इस पुस्तकालय के उद्घाटन के 10 दिन के बाद ही मेरा ट्रांसफर मेरे गृह जिले भीलवाड़ा में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अलमास में हो गया। इस विद्यालय में भी मैंने प्रतापगढ़ जैसी ही स्थिति पाई। नई जगह पर लोगों को समझने में कुछ वक्त लगा, पर विद्यार्थी जल्दी ही घुल मिल गए। विद्यार्थियों के सहयोग से स्कूल के भीतर शीघ्र ही गार्डन तो लगा दिया पर पुस्तकालय की कमी बनी रही। जिला मुख्यालय से लगभग 37 किलोमीटर दूर होने के कारण कई तरह के संसाधनों की चुनौतियां देखने को मिली। यहां पर भी पढ़ने पढ़ाने को लेकर कोई विशेष जागृति नहीं है। कोर्स की किताबें पढ़ाने को लेकर सिस्टम का दबाव बच्चों की गर्दन दूसरी ओर मुड़ने नहीं दे रहा था। बार-बार पुस्तकालय की कसक मन में उठती, पर मन मार कर रह जाता। इसी दरमियान एक संयोग फिर घटा।

राजस्थान सरकार द्वारा बनाई जा रही नई पाठ्यचर्या की समिति में मेरा चयन हुआ। पहली फेस टू फेस मीटिंग के दरमियान दिसंबर 2021 को फिर से दिलीप जी से मुलाकात हो गई। मैंने अपनी पीड़ा दिलीप जी के सामने रखी तो उन्होंने सीएलसी कोर्स, एसआरजी और चाइल्ड लाइब्रेरी का विचार सामने रखा। मैंने उनके सामने इस कार्य को लेकर उत्साह भरा रुझान दिखाया। उदयपुर से लौटने के बाद इसे संयोग ही कहेंगे कि 3 जनवरी से शुरू होने वाले सीएलसी कोर्स में मेरा चयन हो गया। कोर्स की पहली ट्रेनिंग में आने के बाद यहां किताबों के भीतर छुपी दुनिया से परिचय हुआ। बड़ों के अलावा छोटे बच्चों के साथ पुस्तकों से कैसे जुड़ा जाए और उनको पुस्तक प्रेमी कैसे बनाया जाए, ऐसे कई तरह के गुर यहां सीखे। अब चूंकि कोर्स के दौरान हमको यह गतिविधियां स्कूल में भी करनी थी, ऐसे में अब मेरे पास स्कूल के भीतर पुस्तकालय से जुड़ी हुई गतिविधियां करने का मौका और अधिकार मिल गया। कोर्स की पहली संपर्क क्लास के दौरान मिली किताबों को लेकर कक्षा एक से कक्षा 8 तक के विद्यार्थियों के साथ गतिविधियां करने लगा। बुक टॉक, रीड अलाउड, जोड़ा पठन, साझा पठन और खजाने की खोज जैसी गतिविधियां करवाने की रूपरेखा बनाई, पर समस्या आई कि जगह कहां है। शुरू शुरू में स्कूल में लगाए नए नवेले गार्डन में यह प्रक्रिया शुरू हुई। पर कई शिक्षक साथियों की असहमति के बाद काम को जब तक कमरा उपलब्ध ना हो जाए, तब तक रोकना पड़ा। जनवरी के दूसरे सप्ताह में बड़ी कक्षा के विद्यार्थी भी किताबें पढ़ने को लेकर अपनी रुचि रखने लगे। अब ऐसे में किताबें कहां से प्राप्त की जाए और पुस्तकालय कहां चलाया जाए? यह चुनौती फिर आ गई। पर जहां चाह वहां राह।

पुस्तकालय के भीतर अलमारी में बंद पड़ी लगभग डेढ़ सौ किताबों को मैंने अपने नाम से इश्यु करवाया। पुस्तकालय प्रभारी को यह विश्वास दिलाया कि किसी भी तरह के नुकसान का जिम्मेदार मैं रहूंगा। इस तरह से पुस्तकों की व्यवस्था हो गई। अब रहा जगह का सवाल। 12वीं के विद्यार्थियों ने सलाह दी कि सर हमारे कमरे की ताक में किताबें रख दो। यह आईडिया मुझे अच्छा लगा। फिर क्या था आधी किताबें कक्षा 11 की ताक में और आधी किताबें कक्षा 12 की ताक में जमा दी। कुछ किताबों को कमरे के भीतर ही डोरिया बांध कर उस पर टांग दी और इस तरह से अलमास स्कूल के कमरों में कक्षा पुस्तकालय की शुरुआत हो गई। बच्चों को ही इन दोनों पुस्तकालयों की जिम्मेदारी दी हुई थी। रजिस्टर को मेंटेन करना, किताबे लेना देना और रखरखाव की जिम्मेदारी विद्यार्थियों को आपस में बांट दी। क्रमबद्ध तरीके से हर सप्ताह में नए विद्यार्थी का नंबर आता। इस तरह से इन दोनों कक्षाओं के भीतर चलने वाले कक्षा पुस्तकालय मार्च तक चलते रहे। फिर परीक्षा के कारण किताबों को समेटना पड़ा। इधर चिल्ड्रन लाइब्रेरी की गतिविधियां बहुत रुक रुक कर के चल रही थी। इसका सीधा सा कारण यह रहा कि मैं व्याख्याता की पोस्ट पर होने के कारण अक्सर बड़ी कक्षाओं में ही समय दे पाता हूं। लगभग 6 कालांश के बाद जो दो कालांश गतिविधियों के बचते वे और दोपहर के भोजन का समय मिलकर मैंने चाइल्ड लाइब्रेरी के लिए तय कर लिया। इस समय के दरमियान जो कुछ भी हो पाता, वह करने का प्रयास करता रहा।

कहते हैं कि शेर के मुंह पर जब एक बार खून लग जाता है तो फिर उसकी आदत नहीं छोड़ पाता है। कुछ ऐसा ही 12वीं की बोर्ड परीक्षा के बाद के विद्यार्थियों में देखने को मिला। यह विद्यार्थी लगभग 3 महीने से कक्षा लाइब्रेरी का इस्तेमाल कर रहे थे और बोर्ड परीक्षा के दरमियान इनका यह क्रम टूट गया। अब इनको पढ़ने के लिए नई किताबे चाहिए थी। अशोक कुमार पांडे द्वारा हाल ही में लिखी हुई पुस्तक ‘सावरकर : काला पानी और उसके बाद’ नामक पुस्तक ट्रेन में पढ़ते हुए मैंने अपना एक फोटो ऐसे ही सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। इस फोटो को देखकर कक्षा 12 की एक विद्यार्थी ने कमेंट किया कि सर आप तो हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहते हैं हमारे लिए अब किताबे कहां है? इस प्रश्न ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया। बच्चे गर्मी की छुट्टियों में क्या करेंगे? और जो विद्यार्थी 12वीं क्लास पढ़ कर के जा रहे हैं उन्हें वापस कैसे पुस्तकों से जोड़ा जाए? अलमास एक ऐसा गांव है जहां के सभी विद्यार्थी परीक्षा के बाद अक्सर गुजरात कमाने के लिए चले जाते हैं। मैं यह सोचने लगा कि उन्हें किस तरह पुस्तकों का लालच देकर रोका जाए? कई दिन तक उधेड़बुन में रहा। कई विद्यार्थियों के साथ रणनीति बनाई कि गर्मी की छुट्टियों और उसके बाद में पुस्तकालय कहां लगना चाहिए या फिर लगना ही नहीं चाहिए। एक विद्यार्थी ने सलाह दी कि किताबें मेरे घर पर रख दो और हम लोग अपने हिसाब से इसे संभाल लेंगे। इस प्रस्ताव ने मेरी आंखों में चमक ला दी। विचार आया कि जो किताबें मैंने अपने नाम से इश्यु करवा रखी थी, उनको और घर की किताबों को लेकर गांव के भीतर ही एक पुस्तकालय बना देना चाहिए। लगभग 20- 25 पढ़ने पढ़ाने वाले ग्रामीण इस पुस्तकालय की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार दिखे। वार्षिक परीक्षा खत्म होने और परीक्षा परिणाम तैयार करने के बीच लगातार विद्यार्थियों से और ग्राम वासियों से मिलता रहा। इसी बीच सीएलसी कोर्स के प्रशिक्षक, टाटा ट्रस्ट के कार्मिक अनिल जी से भी लगातार चर्चा होती रही। उन्होंने कहा कि सामुदायिक लाइब्रेरी की इस पहल को बाहर से भी किताबों का सपोर्ट मिल सकता है। बस मुझे बच्चों को इसके प्रबंधन के लिए तैयार करना था। जिस रोज गर्मी की छुट्टियां प्रारंभ हुई यानी 17 मई 2022 को हमने गांव के एक शिक्षित नागरिक देवीलाल कुमावत के घर में अस्थाई पुस्तकालय का शुभारंभ कर दिया। चार बच्चे इसे संभालने के लिए तैयार हुए हैं। अभी यह पुस्तकालय एक छोटे से कमरे में चल रहा है। यहां पर गांव के कुछ विद्यार्थी किताबें लेने देने के लिए आते हैं। इस दरमियान कोई भी विद्यार्थी या ग्रामीण किताबों की लेनदेन कर सकता है। यह पुस्तकालय पूरी तरह से निशुल्क है और इसमें लिंग, जाति और वर्ण से जुड़े हुए किसी भी तरह के भेदभाव को जगह नहीं दी जा रही है। कुछ समय बाद इस पुस्तकालय को एक किराए के भवन में स्थानांतरित करने का इरादा है। जिसका किराया हम सभी लोग मिलकर देंगे, ऐसी योजना है। अभी पुस्तकालय के भीतर लगभग ढाई सौ किताबें, कुछ पत्र पत्रिकाएं भी है। हंस, आलोचना, मधुमति, बिपाशा जैसी पत्रिकाओं के पुराने अंक भी यहां रखे हैं।

जानकारी मिली है कि टाटा ट्रस्ट की पराग संस्था ऐसे सामुदायिक पुस्तकालयों के लिए किताबों का सपोर्ट करती है। जल्दी ही उनको भी संपर्क करके हम किताबों के लिए आवेदन करने वाले हैं। तो इस तरह से लोगों के बीच लोगों का पुस्तकालय बनाने का एक छोटा सा प्रयास हुआ है। देखते हैं कितना सफल होता है यह प्रयास।

डॉ. मोहम्मद हुसैन डायर
व्याख्याता
रा उ मा वि आलमास ब्लॉक मांडल जिला भीलवाड़ा राजस्थान

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