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इस नन्हीं-सी कल्पनाशील कविता को बार-बार पढ़ने की अभिलाषा होती है शायद अगली बार कुछ अर्थ या भाव बन सके। कुछेक बार पढ़ने पर ही कविता से निकटता बन पाती है । प्रकृति के सन्दर्भ में खोल शब्द से कई मायने बनते बदलते रहते हैं। संभवतः कविता कहती है , खोल के प्रस्तुत प्रकृति में कुछ भी छुपाए या चुराए जाने का डर नहीं है, यह तो दुनिया है, जो चप्पे-चप्पे तालों में है । सुकून देते चित्र कविता के भाव को कुछ और आगे ले जाते हैं। लेखन की केलीग्राफ़ी सुन्दर व कविता के भावों के अनुरूप है। कविता को शब्दशःयाद करना भले संभव न हो, फिर कभी दुबारा पढ़ने पर कुछ नया कहने, गुनगुनाने वादा ज़रूर करती है।