Loading...

हालांकि , मेंरे छोटे – छोटे कई अनुभव हैं ‘14 चूहे घर बनाने चले’ पुस्तक को लेकर | उनमें से मैं अपनी कक्षा से जुड़ा एक अनुभव साझा कर रही हूँ |

मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का मौका ‘लाइब्रेरी एडुकेटर्स कोर्स’ के दौरान मिला था | यह पुस्तक हम सभी प्रतिभागियों को “पीडीएफ” के रूप में साझा की गई थी| जब मैंने इस पुस्तक को अपने लैपटॉप में पढ़ना शुरू किया, तो मेंरी नजर हर एक पन्ने पर रुकती थी | बहुत ही बारीकी से इसके हर तथ्य का चित्रांकन किया गया है | मैंने जल्दी से इसके चित्र बनाने वाले व्यक्ति का नाम खोजने की कोशिश की, लेकिन मुझे वह उस वक्त नहीं दिखा| पीडीएफ़ में सिर्फ इनके प्रकाशन का नाम छपा था, उस वक्त पता चला की यह “नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया” के द्वारा प्रकाशित किया गया हैं | वैसे कई दिनों बाद जब मैं वापस से तस्वीरों को और भी गौर से देखने लगी ,तो मुझे लेखक का नाम भी लिखा हुआ दिखा “काझुओ इवामुरा”| जो की काफी छोटे अक्षरों में एक कोने में लिखा हुआ था |

इस पुस्तक के चित्रों को जब मैं हर पन्ने पर रुक -रुक कर देख रही थी और हर चूहे के पोशाक और उनके नाम पढ़कर आनंद ले रही थी | जैसे – नौवीं चुहिया एक प्यारी सी फ्रॉक पहनी हुई है, दादा – दादी अपने चश्मे लगाए हुए हैं, सभी अपने पीठ पर थैले लिए हुए नदी पार कर रहे हैं | तब मेंरे मन और दिमाग दोनों में विचार आया की इस पुस्तक को मैं अपने बच्चियों तक जरूर लेकर जाऊँगी | क्या पता जिस प्रकार मैं इसका आनंद उठा रही हूँ वे भी उठाएंगे | इसलिए मैंने इस पुस्तक का प्रिन्ट निकालने का ठान लिया | मुझे इस बात का अंदेशा था कि सुकमा में इसे रंगीन प्रिन्ट करना बाकी जगहों से मंहगा पड़ेगा | पर फिर भी मुझे अपने बच्चियों का अनुभव देखना था इस पुस्तक के बारे में |

मैंने इसके दो रूप में प्रिन्ट निकलवाया एक A4 साइज़ और दूसरा A3 साइज | जो A3 साइज़ के पन्ने थे उसमें चित्र बेहद खूबसूरत और लुभावने लग रहे थे | इसलिए मैं इसे ही पहले अपने कक्षा में ले गई और इसे एक बड़े टेबल पे प्रदर्शनी के रूप में बिछा दिया |

कुछ बच्चियाँ इसे हाथ में लेकर पढ़ने लगी थीं, तो कुछ सिर्फ तस्वीरें देख रहे थे | अंत में कुछ बच्चियाँ मेरे द्वारा सजाए गए पन्नों को लेकर इधर-उधर भाग गईं और कुछ बच्चियों के साथ झुंड बना के देखने लगीं। मुझे सभी के हाव भाव से समझ में आ रहे थे कि इन्हे ये तस्वीरें और कहानी पसंद आ गई है |

इसलिए मैंने सोचा कि क्यों ना इन तस्वीरों पर आधारित कुछ प्रश्नों का निर्माण किया जाए – जैसे – खाने की कौन–कौन सी वस्तु दिख रही हैं चूहों घर में ? अगर आप लोग जंगल जाते हो तो और कोई जानवर दिख जाए तो कैसा लगता है? और तब आप क्या करते हो? क्या आप इस तस्वीर को देख के कुछ लिख सकते हो अपने स्थानीय भाषा में?

विद्यार्थियों ने सिर्फ ऐसे प्रश्नों के उत्तर ही नहीं लिखे, मुझसे आकर जो फलों के नाम कभी उन्होंने नहीं सुने थे वो कैसे दिखते है ? या कैसा लगता है, खाने में ऐसी भी बाते किए | वीना और श्यामबाती ने 10 वाक्य की जगह 15 से 20 वाक्य लिख डाले |

इस तरह की प्रतिक्रिया देख के मेंरा विश्वास हमेंशा मजबूत होता है कि विद्यार्थियों के समक्ष एक प्रभावशाली किताब ले जाने से जिसमें चित्रांकन जबरदस्त तरीके से किया गया हो तो विद्यार्थी खुद–बखुद उस किताब में लिखे अक्षर को पढ़ने की कोशिश जारी रखते हैं | अगर उन्हें दिक्कत भी आती है पढ़ने में तो, वो अपने किसी दोस्त, अपने किसी शिक्षक/शिक्षिका या किसी भी वयक्ति को पढ़ने बोल देते हैं |

मतलब एक तरह से मैँ अपने अनुभव से और कई लोगों के साथ हुई चर्चा के माध्यम, से बोल सकती हूँ क्या? “कि अगर विद्यार्थियों या बच्चे/बच्चियों के लिटरेसी के पीछे भागने की जगह जैसे – अक्षर जोड़ के पढ़ना, या सिर्फ किताबों के पंक्तियाँ पढ़वा के उनकि पढ़ने की क्षमता देखना थोड़ा कम कर दें और उन्हें ‘14 चूहे घर बनाने चले’ जैसे बेहतरीन चित्रों वाले किताबों से शुरुवाती दौड़ में बस परिचित करवा दें, तो क्या वे कहानी में लिखे अक्षरों को खुद से पढ़ने का तरीका जुगाड़ नहीं लेंगे |

वैसे मैंने उस किताब के सारे पन्ने कक्षा के दीवार पे लगा दिए थे | जिस कारण से मेरी तीसरी कक्षा के बच्चे ही नहीं, बल्कि कई दूसरी कक्षा की बच्चियाँ तीसरी कक्षा में आकर उन तस्वीरों को देखती और पढ़ती| कई अपनी बड़ी दीदी को भी बुलाती हैं | वार्डेन मैडम और प्रधानाध्यापक भी आकर देखते थे और बच्चियों को पढ़वा के उनकी पढ़ने की क्षमता देखने की कोशिश करते थे | जब उन्हे भी बच्चियों से प्रतिक्रिया आती हुई दिखती है तो मैं भी उनके शिकायतों से बच जाती हूँ अब, कि “मेरी कक्षा से अधिक आवाजें या शोर आता है |

खैर देखा जाए तो ये किताब छोटे बच्चों (4-8 साल) को नजर में रख के लिखी और बनाई गई है | लेकिन मैंने इसका मजा लेते हुए बड़े बच्चियों को भी देखा है | तो कोई हरज नहीं होगा अगर हम इसे बड़े बच्चों तक ले जाए तो | हम उनकी भी प्रतिक्रिया देख सकते हैं |

jamlowalks

When ‘Jamlo Walks’ with Children

Chandrika Kumar, …yr old, from a village in Okra, Khunti district of Jharkhand, shared her response after listening to ‘Jamlo Walks’…

Divya Tirkey Parag Reads 04 Nov 20201

Of Boxes and Labels

Of Boxes and Labels

Flyaway Boy is a story about a boy who doesn’t fit in – not in his school, among friends and sometimes even struggles to feel part of his family…

Swaha Sahoo Parag Reads 27 November 2020