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किताब का नाम- गोदाम
लेखक- विनोद कुमार शुक्ल
चित्रांकन- तापोषी घोषाल
प्रकाशन- जुगनू प्रकाशन
यूँ तो किशोरों के लिए हिन्दी भाषा में विरले ही साहित्य रचा गया है। जो भी अब तक उपलब्ध रहा उन्हें कंटेन्ट और प्रस्तुतिकरण के आधार पर किशोरों के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता। कुछ प्रकाशन समूह और पत्रिकाएँ विगत कुछ दशकों में जरूर ऐसी सामग्री पाठकों के लिए प्रस्तुत करती रहीं जिनसे साहित्य में किशोरों की आवाजाही बनी रही है। जुगनू प्रकाशन के प्रयासों से इधर कुछेक सालों में हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ लेखक बच्चों और किशोरों के लिए लिख रहे हैं… और उम्दा लिख रहे हैं। इस वर्ष के शुरू में प्रकाशित किताब ‘गोदाम’ को देखकर यह बात पुष्ट ही होती है।
गोदाम, विनोद कुमार शुक्ल की लिखी कहानी है। वैसे तो यह किताब आठ पन्नों की ही है, लेकिन इसकी जड़ें भूत और भविष्य में कई दशकों तक फैली दिखाई देती हैं। किताब के पहले पन्नों पर यह पंक्तियाँ दिखती हैं जो इस विचार को सघन करती हैं…
जीवन में आदमी गुम हुआ रहता है और उसकी
कहानी उसे ढूंढते हुए बनती है।
किराए का मकान। एक मेटाफर की तरह प्रयुक्त हुआ है। वही भी कहानी के प्रोटैगनिष्ट की चाह कि ‘पेड़ वाला घर’ मिले। इसे कई अर्थ दे देता है। यह चाह कि मुझे रहने के लिए ‘पेड़ वाला घर’ चाहिए, एक सामनी बात ही तो लगती है। आज भी ‘धरती’ शब्द सुनते ही हरे-भरे मैदान, जंगलों से भरे भूभाग मन में उभरते हैं। ऐसी धरती पर (शहर, नगर, कस्बों में) पेड़ वाले घर की चाह कोई बेमानी तो नहीं जान पड़ती। लेकिन अगर निजी स्तर पर यह बात सोचनी पड़े तो शायद यह चाह चुनौती भरी हो जाती है, साथ वैश्विक समस्या की ओर इशारा भी करती है। यह अनभिज्ञता है या फिर सच को न देख-समझ पाने की चेष्टा। मकान अपना हो या किराये का, पेड़ तो उसमें अतिरिक्त जगह ही घेरते रहे हैं। वर्तमान जीवन की सच्चाई यह है कि हमने अपनी दुनिया से पेड़ों और प्रकृति को धीरे-धीरे दूर ही कर दिया है। अपने पड़ोस, मुहल्ले या घर की चारदीवारी में एक-एक पेड़ का गिराया जाना इस औरपचारिक रिश्ते के धागे चटकाकर तोड़ना ही तो है। लेखक ने इस बात को बड़े मर्मस्पर्शी तरीके से लिखा है कि ‘जीवन से दूर होकर खुद को सामान और दुनिया को गोदाम बनाने की होड़ जारी है’।
इस किताब का कवर चित्र वर्तमान समय में या या फिर आने वाले दशक में कई नगरों-कस्बों के लिए एक स्वप्न की तरह है। कवर चित्र में एक खिड़की बनी हुई है। खिड़की पर चाय का मग, क्रीम की झाग से लिपटा दाढ़ी बनाने का ब्रुश, पानी भरा मग जिसमें रेज़र डूबा हुआ है और एक पिचकी सी सेविंग क्रीम की ट्यूब। खिड़की के सींकचों से टंगा एक आईना। जिसमें कोई चित्र स्पष्ट प्रतिबिम्बित नहीं है। लेकिन बाहर का नज़ारा भूत ही स्पष्ट है। बादाम का एक भरा पूरा पेड़, जिसपर हरे बादाम कुतरते हुए एक गिलहरी बैठी है दूसरी उसे देखते हुए कुलेल कर रही है।कुल मिलाकर एक फुर्सत भरा समय। प्रकृति से ऐसी घनिष्ठता और रिश्तों की साम्यता कि जिसमें कई काम एक साथ हो रहे होते हैं और लगे कि कुछ काम भी नहीं हो रहा। बहुत ही प्रभावी चित्रांकन है तापोषी घोषाल का। वाटर कलर से बना यह चित्र पूरी कहानी के दौरान कथ्य के प्रभाव को कई गुना बढ़ाते हुए मन मस्तिष्क पर तारी रहता है।
When ‘Jamlo Walks’ with Children
Chandrika Kumar, …yr old, from a village in Okra, Khunti district of Jharkhand, shared her response after listening to ‘Jamlo Walks’…
Flyaway Boy is a story about a boy who doesn’t fit in – not in his school, among friends and sometimes even struggles to feel part of his family…