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यह एक छोटे बच्चे की कहानी है जो मानता है कि वह एक चिड़िया है। वह उड़ना चाहता है लेकिन चाहकर भी वह इसे बता नहीं पाता। उसे उम्मीद है कि शायद उसे पहचान लेंगे पर वह हर बार नाउम्मीद होता है। लेकिन बोल नहीं पाता। निधि दृश्यों के सहारे कहानी उकेरती हैं और बता न पाने की घुटन और पहचान न पाने की कसक हमें भीतर तक महसूस कराती हैं। ‘चिड़िया उड़’ उन सभी की कहानी है जो अपने ‘आसमान’ में उड़ने के लिए आज़ाद नहीं थे और उनकी भी है जो यह पहचान न पाए।
क्या आपको पता था कि कभी कौआ क़ुतुब मीनार को अपनी साइकिल पर लाद ले गया था? या कि जब पापा को डॉक्टर के पास जाना पड़ा था तो क्या ग़ज़ब हुआ था? यह कहानी संकलन गुदगुदाता भी है और लोकजीवन की झलकियाँ भी देता है। भाषा का कमाल, शब्दों का खेल और संवाद गठे हुए तथा नुकीले हैं। इसके चित्र रंग बिरंगे हैं और कहानियों को ठोस या मूर्त बनाने में मदद करते हैं। चित्रों में कहानियों जैसी गतिशीलता है।
अनेक विषयों, वस्तुओं पर रची गयीं कविताओं का यह गुच्छा शिशु गीतों की तरह सरल और सम्मोहक है। यहाँ हाट और गुड़ से लेकर बकरिय़ाँ, शेर और रेगिस्तान भी हैं। कल्पना की उड़ान और कौतुक से सम्पन्न इनकी भाषा का अपना मजा है। ये कविताएँ प्रत्येक वस्तु, जीव और व्यक्ति को नयी नजर से देखने व समझने को आमंत्रित करती हैं, जैसे गाँधी जी और मक़बूल फ़िदा हुसैन पर लिखी कविताएँ, और हमें जीवन की विविधता तथा बहुलता में ले जाती है। चटख रंगों और चौड़ी कूँची वाले चित्र कविता को भित्ति-चित्र की भाँति रूपायित करते हैं।
आसपास की चीजों, दृश्यों, पात्रों से बुनी यह कविता – पुस्तक कल्पनाशील सृजन का अनुपम उदाहरण है। यहाँ अनेक विषयों और वस्तुओं पर अप्रत्याशित कविताएँ हैं जो मामूली प्रसंगों, जैसे नहाने, को भी अविस्मरणीय घटना में तब्दील कर देती हैं। भाषा में नमनीयता और एक खिलंदड़ापन है जो शब्दों तथा ध्वनियों के नये-नये जोड़-तोड़ संभव करती है। किताब के चित्र कविताओं के रंग-अनुवाद की तरह हैं – शब्दों को आकार और रंगों में रूपांतरित करते हुए। ये कविताएँ पाठकों को नये तरीक़े से अड़ोस-पड़ोस को, प्रकृति और स्वयं अपने आप को देखना सिखाती हैं; कल्पना को नये पंख देते हुए भाषा से खेलने और फिर सिरजने को आमंत्रित करती हैं।
यह छोटी पर मनोरम कविता हाथियों की टोली का मार्मिक आख्यान है। केवल आठ पंक्तियों में, छंदोबद्ध और तुकांत, यह कविता हाथियों की टोली के स्वभाव, प्रेम, परस्पर स्नेह और समूह भाव को व्यक्त करती है। भाषा सरल किंतु गहरे अर्थों को व्यंजित करने वाली है। साथ के चित्र कथानक को विस्तार और मूर्तता प्रदान करते हैं, ख़ास कर गहरी यादों को अंकित करता पूरे पन्ने पर फैला आँख की झुर्रियों का क्लोज़-अप। पारिवारिक प्रेम, बच्चों की सुरक्षा,और सयानों के वत्सल भाव को व्यक्त करती यह कविता हाथियों के जीवन का महाकाव्य है।
कितना मज़ा आता ऐसे ही बैठकर एक चिड़िया या किसी भी पक्षी को फुदकते, अपना काम करते देखने में। इस छोटी सी कहानी में जब एक जलमुर्गी और उसके चूज़े लेखक के घर में घुस आते हैं तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती। पर कहानी का अंत बहुत दिलचस्प है। एक ऐसी कहानी जो आपको याद रहेगी। बारीक चित्रांकन कहानी को विस्तार देता है। चूज़ों की हरकतों को कोमलता से हल्के रंगों में अंकित किया गया है।
This unusual book attempts to banish the common perception that philosophy is not for children, though most of us can recognize that children make wonderful philosophers. The book is divided into sections where timeless and core philosophical concerns are transformed into common themes in a child’s life – seeing, thinking, reading, writing, mathematics, art, being good and learning – that they can relate to easily. The quirky illustrations animate and support the lucid text that makes philosophy contemporary, fun, relatable yet absorbing.
विनोद कुमार शुक्ल ऐसे बिम्ब और प्रतीक रचते हैं कि पाठक को गद्य में भी कविता का रस मिलता है। ‘तीसरा दोस्त’ एक छोटी कहानी है जिसमें एक एहसास पूरे जीवन की तरह समाया हुआ है। दो दोस्तों का गहरापन, उनका एक दूसरे में अभिन्न रूप से शामिल होना एक चमत्कार की तरह घटता है। अतनु राय के चित्र हमेशा की तरह इसमें एहसास का गाढ़ापन भरते हैं।