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सबसे अलग लगने वाली यह कविता नीम से एक प्यारी दोस्ताना बातचीत है। इस कविता का अंदाज और बिम्ब, दोनों ही इसे अनूठी बना देते हैं। गीली धूप, पश्मीना फूल, और शोख़ी डाल सरीखे पद, देखने का अंदाज ही बदल देते हैं। यह कविता नीम के पूरे पेड़ की कविता है। नीम के फूल, डाल, पत्ते, निंबोली और छाया तक के बारे में एक साथ। नीम को इतने प्यार और अपनेपन से कम देखा गया होगा। भाषा इतनी आसान कि कविता तुरंत कंठस्थ हो जाती है| चित्रों के रंग नीम के शरीर के हर रंग तथा स्वभाव को जीवंत कर देते हैं।
इस नन्हीं-सी कल्पनाशील कविता को बार-बार पढ़ने की अभिलाषा होती है शायद अगली बार कुछ अर्थ या भाव बन सके। कुछेक बार पढ़ने पर ही कविता से निकटता बन पाती है । प्रकृति के सन्दर्भ में खोल शब्द से कई मायने बनते बदलते रहते हैं। संभवतः कविता कहती है , खोल के प्रस्तुत प्रकृति में कुछ भी छुपाए या चुराए जाने का डर नहीं है, यह तो दुनिया है, जो चप्पे-चप्पे तालों में है । सुकून देते चित्र कविता के भाव को कुछ और आगे ले जाते हैं। लेखन की केलीग्राफ़ी सुन्दर व कविता के भावों के अनुरूप है। कविता को शब्दशःयाद करना भले संभव न हो, फिर कभी दुबारा पढ़ने पर कुछ नया कहने, गुनगुनाने वादा ज़रूर करती है।