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इस संग्रह की एक यादगार कहानी है बंदरों की जल-समाधि जो मनुष्य की विकास की दौड़ में मारे गए हैं। और उनकी मृत्यु को एक बच्चे की दृष्टि से पाठक को महसूस करवाना लेखक से परिपक्वता की अपेक्षा करता है। इस किताब में ऐसा लगता है कि हर कहानी के केंद्र में जैसे लेखक का अपना ही बाल-रूपी किरदार हो। कस्बाती और ग्रामीण जीवन के जीवंत विवरण एकदम आत्मकथात्मक गल्प की विधा में धीरे-धीरे खुलते हैं और पाठक तो एक तरह का काव्य-सुख प्रदान करते हैं।
इस किताब में तीन कहानियाँ हैं और पांच कथेतर गद्य हैं। ये गद्य मनुष्य की पाँच ज्ञानेन्द्रियों से जुड़ी गतिविधियों पर केंद्रित हैं – देखना, सुनना, स्पर्श, गन्ध और स्वाद। देखना, छूना आदि महज जैविक गतिविधियाँ नहीं हैं, बल्कि मानवीय गतिविधियाँ भी हैं। इन जैविक और मानवीय गतिविधियों पर इत्मीनान से रस लेकर विचार किया गया है। किताब में शामिल तीनों कहानियों में पारम्परिक शैली की कथाओं जैसा कथारस है, लेकिन ये कहानियाँ जीवन की कुछ गहरे अस्तित्वगत उलझनों को भी सामने लाती हैं।
यह एक छोटे बच्चे की कहानी है जो मानता है कि वह एक चिड़िया है। वह उड़ना चाहता है लेकिन चाहकर भी वह इसे बता नहीं पाता। उसे उम्मीद है कि शायद उसे पहचान लेंगे पर वह हर बार नाउम्मीद होता है। लेकिन बोल नहीं पाता। निधि दृश्यों के सहारे कहानी उकेरती हैं और बता न पाने की घुटन और पहचान न पाने की कसक हमें भीतर तक महसूस कराती हैं। ‘चिड़िया उड़’ उन सभी की कहानी है जो अपने ‘आसमान’ में उड़ने के लिए आज़ाद नहीं थे और उनकी भी है जो यह पहचान न पाए।
इस संग्रह की कविताएँ विस्मय-बोध, शब्द-क्रीड़ा और फैंटेसी का अनुपम उदाहरण हैं। यहाँ साधारण और आसपास की चीज़ों के भीतर बसने वाले रहस्य और सौन्दर्य को मनोरम तरीक़े से व्यक्त किया गया है। ये कविताएँ कल्पना को पंख देती हैं और हर वस्तु के अलक्षित पक्ष को ढ़ूँढ़ने को प्रोत्साहित करती हैं। ’कहने को कुछ बचा नहीं ऐसा कभी नहीं होता’, यह वाक्य रचनाशीलता के मंत्र की तरह है।
साथ के चित्र भी अपने प्रयोगशील रंगों और रेखाओं से कविता को प्रकाशमान करते है।
इस किताब की कहानियाँ बेहद नएपन से आम जीवन के सामाजिक, साहित्यिक, सांगीतिक, मानवीय, शैक्षिक और पर्यावरण से जुड़े गहरे सरोकारों को अपने में शामिल करती जाती है। जिनमें बच्चों के स्वभाव और चाहते हैं , उनकी उदासी और दोस्ती है । और भी बहुत कुछ है जो आज के साहित्य में अपेक्षित है । कहानियाँ जितने अनूठे विषयों पर हैं, कही भी उसी अनूठेपन से गई है । बेहद सधी हुई ताज़ातरीन भाषा, विचारों व भावों के अनुरूप हैं । कहानियों को विस्तार और गहराई देने का ज़िम्मा लेते चित्र बेमिसाल हैं।
इस कहानी में वेदना और संवेदना दोनों हैं। कहानी में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और प्रकृति के प्रति बहुत ही संवेदनशील दृष्टिकोण उभर कर सामने आता है। लेकिन दूसरी ओर इस संवेदना को तार-तार करती हुई भौतिकवादी इंसान की प्रवृत्ति की तस्वीर भी उभरती है। दोनों के टकराव को लेकर यह बेहतरीन कहानी बुनी गई है। कहानी का नाम गोदाम क्यों है और उस गोदाम में इंसान की क्या जगह है, यह कहानी के अंत में पता चलता है।