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छोटी सी,प्यारी कहानी जो दो अलग अलग डरों और उनके खत्म होने की कहानी है। बेहद कोमल भाव को केंद्र में रखकर रची गयी यह चित्र-कथा बड़े आशय की गाथा बन जाती है–निर्भयता की गाथा। चित्र कथा को प्रस्तुत भी करते हैं और उनके पूरक भी हैं। यहाँ शब्द और चित्र की जुगलबंदी है।
केवल एक कविता से बनी यह पुस्तक जलेबी का गुणगान है। जलेबियों के पारने, छानने, रस में पगने, दोने में परोसे जाने और फिर मुँह में डलने तक का पूरा क़िस्सा मज़ेदार पदों में दिया गया है। साथ ही जलेबियाँ बनाने वाले रफ्फू भाई की महिमा का बखान भी है। बोलचाल की मुहावरेदार भाषा और रसभरे चक्करदार वाक्यों की अद्भुत मिठास विरल घटना है। पूरे वातावरण को ख़ुशनुमा बनाते रंग और रेखांकन देखते ही बनते है। यह कविता जलेबियों के बहाने जीवन की छोटी छोटी बातों और खुशियों का शानदार उत्सव है।
इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ चरित्र और कथानक के नज़रिए से बेजोड़ हैं।
कहानियाँ जितने अनूठे विषयों पर हैं, कही भी उसी अनूठेपन से गई हैं। कहानियों के कई पात्र हाशियाकृत समुदाय की ज़िन्दगी और जीवन मूल्यों को उभारती हैं। बेहद पठनीय, समृद्ध, ताज़ातरीन भाषा कहानियाँ पढ़ने को उकसाती है। गहरे रंगों से रचे गए प्रभावशाली चित्र कहानियों को और भी गहनता से देखने-समझने का नज़रिया देते हैं।
जंगली जीवों पर आधारित किस्सों के इस संकलन में बहुत रोमांचकारी कहानियां हैं जिन्हें पढ़कर पाठक बिलकुल मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। उस लिहाज़ से यह संकलन ऐसे दूसरे संकलनों के समान है। लेकिन जो बात इसे ख़ास बनाती है, वो इसके रोमांचकारी किस्सों से भी ज़्यादा यह है कि लेखक ने जंगली जीवों की आदतों, उनके हाव-भाव और उनकी संरचना आदि का बहुत बारीक वर्णन भी कहानियों में समाहित किया है और वह भी उनके रोमांच को बरकरार रखते हुए।