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यह कहानियाँ किशोर-दृष्टि से बुनी गयी हैं जहाँ साधारण घटना भी अर्थवान बन जाती है, जैसे ट्रेन की यात्रा या बगीचे में अमरूदों की चोरी जो जीवन के बड़े मूल्यों की ओर संकेत करती हैं। इनकी विशेषता यह है कि यहाँ कथानक, पात्र और भाषा सब आस पास के जीवन के हैं। और हर कहानी हमें बेहतर इन्सान बनाती है, हालाकि ये कहीं भी सायास उपदेशात्मक नहीं हैं। कहानियाँ मज़ेदार भी हैं और अंत तक ध्यान बाँधे रखती हैं। चित्र स्थितियों को उभारते हैं और रंग अलग से ध्यान नहीं खींचते।
बच्चों को शब्दों को उलट-पुलट कर देखना अच्छा लगता है। यह किताब पढ़ना सीख रहे शुरुआती पाठकों को कुछ ऐसा ही आनंद देगी। एक शब्द ‘खाना’ को लेकर पूरी किताब में चुहल की गई है। किन-किन शब्दों के साथ खाना शब्द जुड़ता है और कैसे-कैसे संज्ञाओं और क्रियाओं को रचता है इसे लेखक और चित्रकार ने आनंद लेकर दिखाया है। यह सही अर्थों में एक चित्र-पुस्तक है। भाषा और छवियों की साझेदारी इस किताब में दिखती है। यह इस वर्ष की एक अच्छी, आनंददायक किताब है।
A delightful story, written in verse, about a family computer which has lost the letter ‘z’ (American ‘Zee’). We can imagine what would happen if we were to lose ‘a’ or ‘p’ on the keyboard. But ‘z’? Playfully narrated and illustrated, the story makes us think about the much neglected ‘z’. The wordplay and the mischief make this a fun book. There are a ‘illion’ reasons to read this picture book!
यह किताब, बच्चों के कल्पनाशील और अचरज भरे ढेर सारे सवालों और गुलज़ार के उतने ही अलबेले और मज़ेदार जवाबों की बानगी प्रस्तुत करती है। एक तरफ़ सवालों में बच्चों का सहज उत्सुकताबोध दिखाई देता है तो दूसरी ऒर जवाबों में वैसा ही विस्मयबोध। सवाल-जवाब के भावों में पगे सादगी भरे चित्र इसे और भी पठनीय और दिलचस्प बनाते हैं। प्रस्तुति और आकल्पन में एक तरह का खुलापन और खिलापन है जो पढ़ने वाले को ख़ुशी और सोचने का अवसर मुहैया कराते हैं। एक अनुपम किताब।
लाइटनिंग, यह सुन्दर और कल्पनाशील नाम है एक बाघिन का, जिसके इर्द गिर्द यह कहानी बुनी गई है। कहानी बाघिन के बारे में रूढ़ मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उसकी नैसर्गिकता को सामने लाती है। उसके अपने घर व घर के अन्य बाशिंदों के साथ प्यार और चाहत के रिश्तों को उभारती है। और उभारती है मानव समुदाय की जंगल जीवों के प्रति उस आत्मीय जवाबदेही को जिसके बिना पर ही इन सबका जीवन संभव और सुखद लगता है। सधी हुई भाषा में ताजगी, सादगी और रवानगी है। सभी चित्र बेमिसाल है खासकर तब का जब ‘चाँद को गर्व हो रह था…कुछ ही देर पहले वह यहाँ थी’ और बाघिन के वहाँ होने को चित्र में उकेरा गया है।
इस किताब में हिन्दी के अद्वितीय कवि नवीन सागर की ढेर सारी कविताओं का अनूठा संकलन है। इन कविताओं में वह सब कुछ है जो बचपन के इर्द गिर्द होना चाहिए। कल्पनाओं की उड़ान, रिश्तों की गर्माहट और संवेदनाएँ हैं। बच्चों की शैतानियाँ और हिदायतें हैं। उनकी आज़ादी, उत्सुकता, खिलंदड़पन और भाषा व शब्दों के खेल हैं। और यह सब कुछ बच्चों और बड़ों के आसपास के जीवन सन्दर्भों से लेकर पिरोया हुआ है। कविता दादाजी नाराज़ है मानवीय संवेदनाओं की मर्मस्पर्शी बानगी प्रस्तुत करती है।