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बिक्सू’ आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले झारखंड के एक ग्रामीण बालक की कहानी है। बिक्सू पढ़ते हुए पाठक संवेदनात्मक और बौद्धिक स्तर पर समृद्ध होंगे ऐसा कई कारणों से लगता है। बिक्सू की कहानी में एक तरफ अगर स्थानीय रंग गहरे हैं तो दूसरी तरफ यह कथा सार्वभौमिक कथाभूमि पर भी एक लकीर खींचती चलती है। यह कथा जितना बाहर चलती है उतना ही भीतर भी। मुख्य पात्र की स्मृतियों और मानसिक द्वंद्वों को भाषा, चित्र और ले ऑउट डिजाइन सभी स्तरों पर अभिव्यक्त करने की कोशिश की गई है।
इन कहानियों में वर्णित चरित्र प्रायः किन्ही विनाशकारी स्थितियों से गुजरते हुए दिखते हैं। ये कहानियाँ जितना बाहरी उथल-पुथल को व्यक्त करती हैं, उतना ही चरित्रों की भीतरी मनोदशाओं, स्वप्नों, आकांक्षाओं और आशंकाओं को भी व्यक्त करती हैं। शिल्प के स्तर पर अकसर ये कहानियाँ यथार्थवादी शिल्प में शुरू होती हैं, लेकिन अकसर यथार्थवादी शिल्प का अतिक्रमण कर फंतासी में चली जाती हैं। प्रत्येक कहानी के कुछ महत्त्वपूर्ण दृश्यात्मक पहलुओं को चित्रांकन के माध्यम से उजागर किया गया है।
यह छोटी पर मनोरम कविता हाथियों की टोली का मार्मिक आख्यान है। केवल आठ पंक्तियों में, छंदोबद्ध और तुकांत, यह कविता हाथियों की टोली के स्वभाव, प्रेम, परस्पर स्नेह और समूह भाव को व्यक्त करती है। भाषा सरल किंतु गहरे अर्थों को व्यंजित करने वाली है। साथ के चित्र कथानक को विस्तार और मूर्तता प्रदान करते हैं, ख़ास कर गहरी यादों को अंकित करता पूरे पन्ने पर फैला आँख की झुर्रियों का क्लोज़-अप। पारिवारिक प्रेम, बच्चों की सुरक्षा,और सयानों के वत्सल भाव को व्यक्त करती यह कविता हाथियों के जीवन का महाकाव्य है।