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इस किताब में तीन कहानियाँ हैं और पांच कथेतर गद्य हैं। ये गद्य मनुष्य की पाँच ज्ञानेन्द्रियों से जुड़ी गतिविधियों पर केंद्रित हैं – देखना, सुनना, स्पर्श, गन्ध और स्वाद। देखना, छूना आदि महज जैविक गतिविधियाँ नहीं हैं, बल्कि मानवीय गतिविधियाँ भी हैं। इन जैविक और मानवीय गतिविधियों पर इत्मीनान से रस लेकर विचार किया गया है। किताब में शामिल तीनों कहानियों में पारम्परिक शैली की कथाओं जैसा कथारस है, लेकिन ये कहानियाँ जीवन की कुछ गहरे अस्तित्वगत उलझनों को भी सामने लाती हैं।
यह मूल्यवान पुस्तक महान चित्रकार रज़ा के चित्रों को देखने और समझने का अप्रतिम उपक्रम है। लेखक की प्रस्तावना और टिप्पणियाँ, रंग, रेखाओं और रिक्त अवकाशों को व्याख्यायित करते हुए कला के सौन्दर्य का उद्घाटन करती हैं। ’वह जो अपने हर अंश में स्पंदित हो रहा है वही जीवन है’: लेखक ने रज़ा के दस विख्यात चित्रों के स्पंदनों को महसूस करने के नये कोण, दृष्टि और तत्जनित रसास्वादन से पाठकों को समृद्ध किया है।