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“इटली की सच्ची परीकथा” … ‘उड़ती चारपाई’ किताब का यह उप- शीर्षक सहसा ही पाठक का ध्यान आकर्षित करता है। साथ ही मन एक संदेह से भर जाता है कि क्या परिकथाएं भी सच्ची हुआ करती हैं?…
यूँ तो किशोरों के लिए हिन्दी भाषा में विरले ही साहित्य रचा गया है। जो भी अब तक उपलब्ध रहा उन्हें कंटेन्ट और प्रस्तुतिकरण के आधार पर किशोरों के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
विज्ञान कहता है कि एक पेड़ की कोई दो पत्तियां भी एक जैसी नहीं होतीं। उसी तरह बच्चे परिवार के हों या समाज के, उनका स्वभाव और व्यक्तित्व भी अलग-अलग ही होता है।…
स्वीडिश रचनाओं का गुलदस्ता: खुल जा सिम सिम
पिछले महीने मैं उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में अपने काम के सिलसिले में गया था। एक सरकारी विद्यालय की लाइब्रेरी में एक मज़ेदार किताब मेरे हाथ लगी..
गिजुभाई के ख़जाने से आती गुजराती लोक कथाओं की खुशबू
शिल्प और कथन के हिसाब से देखा जाय तो लोक-कथाएँ सम्पूर्ण जान पड़ती हैं। इन कहानियों को पहली पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को, दूसरी ने तीसरी, तीसरी ने चौथी को सुनाया होगा…
उदारीकरण के बाद हमारे देश की सामाजिक संरचना के ढाँचे में परिवर्तन आया है। उसकी प्रतिष्ठा सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय से अनुमानित की जाती है। इसने कला-संस्कृति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया है।…