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दीपा बलसावर द्वारा लिखी कहानी “नानी चली टहलने” बच्चों को समाज के उन पहलुओं से रु-ब-रु कराती है जहाँ हमारा सम्बन्ध केवल इंसानो से ही नहीं बल्कि पशु -पक्षी, जानवरों और पेड़-पौधों से भी है, और नानी द्वारा इनके बीच के आपसी स्नेह के रिश्ते को बहुत ही खूबसूरती से बताया गया है, इसीलिए तो नानी जब टहलने निकलती है तो सीधा पार्क जाने का रास्ता न लेकर हर उस जगह से गुजरती है जहाँ से उन्हें कुछ सामान खरीदना है या किसी से मिलना है, और इसी छोटी सी सैर के दौरान वह हर जगह को एक नाम देती जाती हैं जैसे – बाज़ार को खजाने की गली; यहाँ बाजार का चित्र पाठक के मन मस्तिष्क में बाज़ार की छवि उभारने में सहायता करता है, यहाँ बैग बेचने वाला, चाउमीन बेचने वाला, खिलौने वाला, नींबू बेचने वाला, सूट- साड़ियों की दुकान, दूध-दही,पनीर की दुकान, सब्ज़ी बेचने वाला, हलवाई आदि हैं, और वह लोग भी है जो बाज़ार में बतिया रहें है, चाउमीन-समोसे का आनंद ले रहे हैं या इस बाज़ार के शोर से अलग किसी कोने में अपने कुत्ते के साथ खेल रहे है। इस पूरी किताब के चित्रों की यही खासियत है कि चित्रों को देखते ही पाठक को वहां होने का अहसास होता है इसीलिए बाज़ार की चहल -पहल को, शोर को, चित्र देखते ही महसूस किया जा सकता है। बिग बुक होने की वजह से चित्र, कहानी को समझने में और अधिक स्पष्टता प्रदान करते हैं।
यहाँ से खरीदारी के बाद नानी आगे यादों की गली की ओर बढ़ती है| जहाँ लोग अपने पुराने कपड़े (जिनसे किसी न किसी की कोई न कोई याद ज़रूर जुड़ी होगी) देकर गुदड़ियाँ बनवाते हैं। फिर आगे लाड़ -पुचकार की गली जहाँ नानी गलियों में रहने वाले कुत्ते -बिल्लियों को दूध पिलाती हैं। और इसी तरह इस सैर में वह “प्यारे शोर का पथ”, “दोस्ती सड़क”, “सुकून सराय” और जादू मार्ग पहुँचती हैं जहाँ पर पार्क है, और इस पार्क में गुलमोहर, अमलतास और जरुल के पेड़ों पर खिले फूल अपना जादूई रंग बिखेर रहे हैं शायद इसीलिए नानी ने इसको जादू मार्ग का नाम दिया है। इस पूरी सैर के दौरान नानी द्वारा बाज़ार, गलियों, रास्तों को अपनी तरफ से एक प्यार भरा नाम देना यही दर्शाता है कि यह जगह, रास्ते, गलियाँ तो हम सभी के जीवन में है अगर इनसे एक रिश्ता बना लें तो इनकी सार्थकता और बढ़ जाएगी क्योंकि बाज़ार केवल वस्तुओं का क्रय -विक्रय करने वाली जगह ही नहीं है है बल्कि एक ऐसा रंग -बिरंगा संसार है जहाँ एक ही समय में बहुत कुछ घट रहा होता है, और कुछ पल ठहर कर उस जगह की जीवन्तता को महसूस करना अद्भुत है।
इस पूरी सैर के दौरान नानी का नाती – “वेन्की” भी उनके साथ होता है और कहानी के अंत में कहता है “आपकी गलियाँ मुझे भी अच्छी लगी। अगले हफ़्ते भी मैं आपके साथ टहलने चलूँ ? ” वेन्की का यह कहना व पूछना ऐसा लगता है जैसे एक पीढ़ी ने आने वाली पीढ़ी को प्रकृति से, जीव -जंतुओं से, लोगों से, स्नेह व प्रेम के रिश्तों को, अहसासों को सौंपा है और यह अहसास बहुत ही सुकून भरा है।
जब मैंने यह किताब प्रार्थना सभा में अपने स्कूल के सभी बच्चों के साथ साझा करी ,तब कहानी सुनाने से पहले किताब के साथ दिये गये पोस्टर पर कक्षा 3 से 5वी तक के सभी बच्चों के लिये कहानी लेखन प्रतियोगिता करायी जिससे बच्चों को चित्र देखकर कहानी का अनुमान लगाने और अपनी कल्पनाओं को उड़ान देने का मौका मिले। इस प्रतियोगिता में बच्चों ने बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया और पोस्टर को देखकर कहानी लिखी। शुरुआत में बच्चों ने पोस्टर में होने वाली गतिविधियों को कहानी में पिरो दिया, हालाँकि यह बच्चों का कहानी लेखन का पहला प्रयास था तो उन्हें हतोत्साहित न करते हुए कहानी में संवादों की जरुरत बताते दोबारा कहानी लिखने को कहा। तब बच्चों ने जो कहानियाँ लिखी उसमें रोज़मर्रा के जीवन में जिस प्रकार वह अपने परिवार वालों को मोलभाव करते देखते है उसी प्रकार के संवाद उनकी कहानियों में दिख रहे थे। यह मेरे लिए बहुत ही सुखद अहसास था कि बच्चे कहानी को अपने जीवन से जोड़कर देख रहे थे। अपने अनुभवों को शब्द दे रहे थे और उनके भीतर एक लेखक जन्म ले रहा था। एक शिक्षिका होने के नाते जिसे पोषित करना ही चाहिए अन्यथा इन सब गतिविधियों का कोई औचित्य नहीं रहेगा। नानी चली टहलने जैसी किताबें हमें ऐसी सम्भावनाएँ प्रदान करती हैं जहाँ हम कई गतिविधियाँ करा सकते हैं जैसे ;चित्रों पर बातचीत करना ,नाना-नानी ,दादा-दादी के साथ संबंधों पर बातचीत करना ,गली -रास्तों को प्यार भरा नाम देने पर चर्चा करना या फिर हमारा और प्राणी जगत के साथ कैसा रिश्ता हो ? इस पर विमर्श करना। ऐसी ढेरों संभावनाएं यह किताब हमें देती है। जिसके द्वारा हम बच्चों को सजग ,जागरुक व सक्रिय पाठक बना सकते हैं। कहानी लेखन प्रतियोगिता के बाद जब सभी बच्चों को प्रार्थना सभा में कहानी सुनायी गयी तो उन्हें भी वेन्की की तरह नानी की गलियां बहुत भायी। बाद में बच्चों ने लाइब्रेरी में जाकर स्वयं इस कहानी को पढ़कर किताब का आनंद लिया।
स्वीडिश रचनाओं का गुलदस्ता: खुल जा सिम सिम
पिछले महीने मैं उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में अपने काम के सिलसिले में गया था। एक सरकारी विद्यालय की लाइब्रेरी में एक मज़ेदार किताब मेरे हाथ लगी..
गिजुभाई के ख़जाने से आती गुजराती लोक कथाओं की खुशबू
शिल्प और कथन के हिसाब से देखा जाय तो लोक-कथाएँ सम्पूर्ण जान पड़ती हैं। इन कहानियों को पहली पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी को, दूसरी ने तीसरी, तीसरी ने चौथी को सुनाया होगा…